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________________ इच्छ, नियावा, कार, मालिका, निशिका, प्रापुच्छा, प्रतिपृच्छा, छंदन, सनिमंत्रणा और उपसंपत् इस तरह ये प्रोभिक समाचार के बस आगे इमका विषय कहते हैं: सम्यग्दर्शनादि शुद्ध परिणाम बा व्रतादिक शुभ परिणामों में हर्ष होना अपनी इच्छा से प्रवर्तना, इच्छाकार है । व्रतादि में प्रतीचार होने रूप अशुभ परिणामों में काय बचन मन की निवृत्ति करना मिथ्या शब्द कहना मिध्याकार है । सूत्र के अर्थ ग्रहण करने में 'जैसा प्राप्त ने कहा है वैसे ही है' इस प्रकार प्रतीति सहित 'तथेति' यानी-ऐसा ही है कहना तथाकार है । रहने को जगह से निकलते समय देवता गृहस्थ आदि से पूछकर गमन करना अथवा पापक्रियादिक से मन को रोकना पासिका है। नवीन स्थान में प्रवेश करते समय वहां के रहनेवालों से पूछकर पवेश करमा अथवा सम्यग्दर्शनादि में स्थिरभाष रहना निषेधिका है। अपने पठनादि कार्य के प्रारम्भ करने में गुरु आदिक को बन्दना-पूर्वक प्रश्न करना आपृच्छा है । समान धर्म वाले साधर्मी तथा दीक्षा गुरु आदि गुरु इन दोनों से पहले दिये हुए पुस्तकादि उपकरसों को फिर लेने के अभिप्राय से पूछना प्रतिपृच्छा है । ग्रहण किये पुस्तकादि उपकरणों को देनेवाले के अभिप्राय के अनुकूल रखना छंदन है तथा नहीं लिए हुए अन्य द्रव्य को प्रयोजन के लिए सत्कार पूर्वक याचना अथवा विनय से रखना निमंत्रणा है । और गुरुकुल में (अाम्नाय में) में आपका हूं, ऐसा कहकर उनके अनुकूल माचरण करना उपसंपत् है। ऐसे दस प्रकार प्राधिक समाचार हैं। ऊपर दस प्रकार के औधिक समाचार का संक्षप से वर्णन किया गया, अब पद-विभागी समाचार का वर्णन करते हैं :--- जिस समय सूर्य उदय होला है तब से लेकर समस्त दिन रात को परिपाटो में मुनि महाराज नियमादिकों को निरंतर प्रापरण करें, यह प्रत्यक्ष रूप पद विभागी समाचार मिनेन्द्र देव ने कहा है: आगे प्रोधिक के दस भेटों का स्वरूप कहते हुए इच्छाकार को कहते संयम के उपकरण पीछी में तथा ऋतज्ञान के उपकरण पुस्तक में और शोच के उपकरण, कमंडल में; आहारादि में, प्रोषपाधि में, उपकालादि में, ग्रात्तापन आदि योगों में, इच्छाकार करना अर्थात् मन को प्रधाना चाहिए। अब मिथ्याकार का स्वरूप कहते हैं:
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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