SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १९) जा प्रतादिक में प्रती चार रूप पाप मैंने किया हो वह मिथ्या होवे ऐसे सिवा किये हुए पाप को फिर करने की इच्छा नहीं करता और मनरूप अंतरंग भाव से प्रतिक्रमण करता है उसी के दुष्कृत में मिथ्याकार होता है। प्रागे तथाकार का स्वरूप कहते हैं : जीवादिक के व्याख्यान का सुनना, सिद्धान्त का श्रवण, परम्परा से चले पाये मंत्रतंत्रादि का उपदेश और सूत्रादि के अर्थ में जो ग्रहंत देव ने कहा है सो सत्य है, ऐसा समझना तथाकार है । भागे निषेधिका व प्रासिका को कहते हैं :-- जलकर विदारे हुए प्रदेश रूप कन्दर, पल के मध्य में जलरहित प्रदेश रूप पुलिन, पर्पत के पसवाडे छेदा गुमा इत्यादि निजन्तु स्थानों में प्रवेश करने के समय निषेधिका करे । और निकलने के समय प्रासिका करे। . प्रश्न- कैसे स्थान पर करना चाहिए ? उसे कहते हैं: व्रतपूर्वक उष्णता का सहनारूप आतापनादि ग्रहण में, आहारादि की इच्छा में तथा अन्य प्रामादिक को जाने में नमस्कार पूर्वक प्राचार्यादिकों से पूछना तथा उनके कथनानुसार करना प्रापृच्छा है। आगे प्रतिपृच्छा को कहते हैं ; किसी भी महान कार्य को अपने गुरु, प्रर्वतक, स्थविरादिक से पूछकर करना चाहिए उस कार्य को करने के लिए दूसरी वार उनसे तथा अन्य साधर्मों साधुओं से पूछना प्रतिपृच्छा है। - आगे छन्दन को कहते हैं : प्राचार्यादिकों द्वारा दिये गये पुस्तकादिक उपकरणों में, वन्दना सूत्र के छन्दन का अभिप्राय, अस्पष्ट अर्थ को पूछना प्राचार्यादि की इच्छा के अमुकूल आचरण करना छन्दन है। आगे निमंत्रणा सूत्र को कहते है :-- गुरु अथवा साधर्मी से पुस्तक व कमंडलु आदि द्रव्य को लेना चाहे तो उनसे नम्रीभूत होकर याचना करे। उसे निमंत्रणा कहते हैं। अब उपसम्पत् के भेद कहते हैं : गुरुजनों के लिए मैं आपका हूँ, ऐसा आत्मसमर्पण करना उपसम्पत्, है । उसके पांच प्रकार हैं विनय में, क्षेत्र में, मार्ग में, सुखदुःख में और सूत्र में करना चाहिए। अब विनय में उपसम्पत को कहते हैं:
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy