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________________ । . . .: सभ्यम्हष्टि जोगा सम्यादर्शन के प्रभाव से ..विकलेन्द्रिय, भूवनवासा, व्यन्तर, ज्योतिषी देवों में, पशुमों में, नपुसकों में, स्त्रियों में तथा नीच कुलों में उत्पन्न नहीं होता, हीनांग, अधिकांग, हीनायुष्क नहीं होता। : : __वह अपर्याप्तक मनुष्य, कुभोगभूमिज, , म्लेच्छ : बहिविरूपी, कुब्जक, वामन, पंगु, इत्यादि कुत्सित पर्याय में जन्म नहीं लेते तथा मायु समाप्त होने पर वहाँ से भरकर देवगति में, या सम्यक्त्व से पूर्व बान्धी हुई आयु की अपेक्षा नरक गति में रहकर पुनः सम्यक्त्व को प्राप्त करके कर्म भूमि में उत्कृष्ट मानव पर्याय धारण करते हैं तथा अपने वार्मो की निर्जरा करके उसी भव से मोक्ष को चले जाते हैं । यदि वे उस भव में मोक्ष न जा सके तो पुनः ८ भव तक मनुष्य निर्यग्गति आदि में रहकर अन्त में सम्यक्त्व ग्रहण करके महद्धिक देव होते हैं। तत्पश्चातू वहां से आकर उसी भव में अपने समस्त कर्मों का क्षय करके शीघ्र ही मोक्ष पद प्राप्त कर लेते हैं । २२७ । हलधर कुलधर मगधर । कुलिशधर मुधर्म तीर्थकर चक्रधरा--॥ सेलकुसुमास्त्रघरसमु-। द्वलविद्याधरर लक्ष्मिसम्यक्स्वफलं ॥२२८१ दोर कोळ छ द सम्यक्त्वं । दोर कोंडडेवियु बछवरणदोकुळियं ।। स्फुरितोरसाह परंपरें । 'निरंतर भव्यग्रह दोळोरचल्वेडा ॥२२६।। - शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्य दृष्टि प्रशंसा तथा अन्य दृष्टि स्तवन ये सम्यग्दृष्टि के पांच अतिचार हैं। इन पांचों को टालकर सम्यग्दृष्टि अपने शुद्ध सम्यग्दर्शन की रक्षा करता है। इसलिए भगवान जिनेश्वर के वचनों का पूर्ण रूप से विश्वास करके इन अतिचारों से रहित सम्यग्दर्शन का पालन करना चाहिए १२२८ २२६। आगे समाचार शब्द की चार प्रकार से निरुक्ति कहते हैं:.. राग द्वेषा का प्रभाव रूप जो समतानवि है वह समाचार है, अथवा सम्यक् 'अर्थात् प्रत्तीचार रहित जो मूलगुणों का अनुष्ठान पाचरण है, अथवा प्रमत्तादि समस्त मुनियों के समान · अहिंसादि रूप जो आचार है वह समाचार है अथवा सब क्षेत्रों में हानि वृद्धि रहित कायोत्सर्गादि के सदृश परिणाम रूप पाचरण समाचार है। . ..अब समाचार के भेद कहते है: . . समाचार अर्थात् सम्यक आचरण दो प्रकार का है-औधिक और पदविभागिक । भौधिक के दस: भेद हैं और पदविभागिक समाचार अनेक तरह का : है। औधिक समाचार के दस भेद निम्नलिखित हैं:-.....
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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