________________
तथा उनके अंगों का स्पर्श करके शुभाशुभ फलों को कहना अंग निमित्त है। स्वर को सुन कर तदनुसार फलों को कहना स्वर निमित्त है। शरीर के ऊपर पड़े हुये काले तथा सफेद तिलों को देखकर उसके फल को कहना व्यञ्जन निमित्त है । शरीरस्थ सामुद्रिक रेखा में हल, कुलिश, द्वीप, समुद्र, भवन, विमान, वारण, पुरी गोपुर, इन्द्रकेतु, शंख, पताका, मुशल, ह्य रवि, शशि, स्वस्तिक, दारु, कूर्म, अंकुश, सिह गज, वृषभ, मत्स्य, छत्र शय्या, यासन, बद्धमान, श्रीवत्स, चक्र अनल कुम्भ ऐसे ३२ शुभलक्षणों को देखकर उसके शुभाशुभ फलों को कहना लक्षणनिमित्त है। शस्त्र कंटक मुसक आदि से होने वाले छिद्र को देख कर नया नयंग को बाहना छिन्न निमित्त है। स्वप्न को देख सुनकर नयेयनयंग को कहना स्वप्ननिमित्त है।
१६-द्वादशांग चतुर्दश पूर्वो को बिना देखे केवल श्रबरण मात्र से ही उसके अर्थ को कहना प्रज्ञा श्रवणत्व है। १७–परोपदेश के बिना ही अपने संयमबल से संपूर्ण पदार्थों को जानना एक मुद्धि है। १---देगेन्द्रादि को बाद में हतप्रभ करने वाली प्रतिभाशाली बुद्धि को बादित्व कहते हैं । इस प्रकार ऋद्धि बुद्धि के १८ भेद हैं ।
क्रियाऋद्धिद्विविधा :६०।
चारणत्व, आकाशगामित्व, ऐसे क्रिया ऋद्धि के दो भेद हैं। यह इस : कार है:-जल चारणत्व, जंघा चारणत्व, तन्तु चारणत्व, पन चारणत्व' फलचारणत्व, पुष्प चारणत्व, आदि अनेक भेद धारणत्व के हैं। बैठकर या खड़े होकर पांव से चलते हुये अथवा पांव विन्यास से रहित गगनागमन करना प्राकाशगामित्व है। - ।
विक्रियकादशविधा ।
विक्रिया ऋद्धि के १ अणिमा, २ महिमा, ३ लघिमा ४ गरिमा, ५ प्राप्ति, ६ प्राकाम्य'; ७ ईशत्व; ८ वशिल; 8 अप्रतिघात, १० अन्तर्धान, ११ काम-रूपित्व ये ग्यारह भेद हैं।
उनमें से छोटा शरीर बना लेना अणिमा, मोटा शरीर बना लेना महिमा लघु शरीर को बना लेना लधिमा, अपनी इच्छानुसार बड़ा शरीर बना लेना गरिमा जमीन में रहते हुये भी अपनी उँगली से मेरु पर्वत को स्पर्श कर लेने की शक्ति प्राप्त कर लेना प्राप्ति, जिस प्रकार जमीन पर गमन किया जाता है उसी प्रकार पानी पर चलना प्राकाम्य, तीनों लोकों के नाथ बनने की शक्ति ईशत्व, सभी को बन कर लेना वशित्व, पर्वत की चोटी पर पाकात के समान घले जाना मालि