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( ३०१ )
एसा समझकर निम्नलिखित प्रकार ध्यान करना चाहिए । "रागद्वेष, क्रोध-मान- माया -लोभ, पंचेन्द्रिय-विषय-व्यापार - मनोवचन
गम्य
प्राप्त्या
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काय कर्म, भावकर्म - द्रव्यकर्म - नौकर्म, ख्याति, पूजा, लाभ, दृष्ट श्रु तानुरूप भोगकांक्षा-रूप-निदान, माया मिध्यात्व शस्यत्रय गावंश्रय, - दंडत्रय - विभाव परिणाम शून्योऽहं निजनिरंजन स्वशुद्धात्म-सम्यक्त्व - श्रद्धान-ज्ञानानुष्ठान-रूपाभेदरत्नत्रयात्मकनिर्विकल्प समाधि-संजात-वीतराग सहजानन्द सुखानुभूति रूप मात्र लक्षणेन स्वसंवेदन - ज्ञान - सम्यक्त्व प्राप्त्याभरितावज्ञानेन भरितावस्थोऽहं निज- शुद्धात्मकोत्को संज्ञानक स्वभावोऽहं सहज-शुद्धपारिणामिक भावस्वभावोऽह्, सहज शुद्धज्ञानानन्दैकस्वभावो5 हं, मदच्छल निर्भयानन्दरूपोऽहं, चित्कलास्वरूपोऽहं चिन्मुद्रांकितनिर्विभागस्वरूपोऽ हैं. चिन्मात्र मूत्तिस्वरूपोऽहं चैतन्यरत्नाकर स्वरूपोऽहं चैतन्य - रसरसायन स्वरूपो ऽ हैं, चैतन्य-चिन्हस्वरूपोऽहं चैतन्य- कल्याण- वृक्ष स्वरूपोऽहं ज्ञानपुञ्जस्वरूपोऽहं ज्ञानज्योतिः स्वरूपोऽहं ज्ञानामृत प्रभाव - स्वरूपो ऽ हं, ज्ञानावस्वरूपो ऽ हैं निरुपम निर्लेपस्वरूपोऽहं निरवद्यस्वरूपो ऽ हैं, शुद्धचिन्मात्र स्वरूपो ऽहं शुद्धाखण्डकमृतिस्वरूपो ऽ हूं, अनन्तज्ञानस्वरूपोऽर्ह, अनन्त-शक्ति-स्वरूपोऽहं सहजानन्दस्वरूपोऽहं परमानन्दस्वरूपोऽहं परमज्ञान स्वरूपो s हं सदानन्द स्वरूपो ऽहं चिदानन्द स्वरूपो ऽहं निजानन्दस्वरूपो ऽ नित्यानन्द स्वरूपो ऽहं निजनिरंजन स्वरूपोऽहं सहज सुखानन्द स्वरूपोऽहं नित्यानन्दमय स्वरूपो ऽ हूं, शुद्धात्म स्वरूपो ऽ हं, परमज्योतिः स्वरूपोऽहं स्वात्मोपलब्धि स्वरूपोऽहं शुद्धात्मानुभूति स्वरूपोऽहं शुद्धात्म संवित्ति स्वरूपोऽहं भूतार्थं स्वरूपो ऽ हूं, परमार्थस्वरूपोऽहं निश्चयपंचाचार स्वरूपोऽहं समयसार समूह स्वरूपो 5 हूं, अध्यात्मसार स्वरूपो ऽ हैं, परम मंगल स्वरूपोऽहं परमोत्तम स्वरूपो ऽ हं, परमशरणोऽ हं, परम केवल ज्ञानोत्पत्ति कारण स्वरूपो ऽहं सकलकर्म क्षय कारण स्वरूपोऽहं परमाद्वैत स्वरूपो ऽहं शुद्धोपयोग स्वरूपो ऽ हं, निश्चय पडावश्यक स्वरूपो ऽ हूं, परम स्वाध्याय स्वरूपो ऽहं परमसभाधि स्वरूपो ऽ हैं, परमस्वास्थ्य स्वरूपो s हं परम भेदज्ञांन स्वरूपो ऽ हं, परम स्वसंवेदन स्वरूपोऽ हूं, परम समरसीमाव स्वरूपो 5 हं, क्षायिक सम्यक्त्व स्वरूपो 5 हूं, केवल ज्ञान स्वरूपोऽहं केवल दर्शन स्वरूपो s हं, अनन्त वीर्य स्वरूपो ऽ हं, परम सूक्ष्म स्वरूपो ऽहं अवगाहन स्वरूपो 5 हूं, अगुरुलघु स्वरूपोऽहं अव्यावाध स्वरूपोऽहं अष्टविधकर्म रहितो 5 हूं, निरंजन स्वरूपो ऽहं नित्यो ऽ हूं, अष्टगुण सहितो ऽ हूँ, कृतकृत्यो ऽ हूं,
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