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________________ ( २३४ ) “धातिचतुष्टयरहितोऽहम् श्रष्टादशदोष रहितोऽहम् पंचमहाकल्याणकसहितोऽहम् अष्टमहाप्रातिहार्यं विशिष्टोऽहम्, चतुस्त्रिंशदतिशय समेतोऽहम् शतेन्द्रवृन्दवन्धपादारविन्द द्वन्द्वोऽहम् विशिष्टानन्त चतुष्टय समवशरणादि रूपान्तरंग बहिरंग श्रीसमेतोऽहम् परमकारुण्यरसोपेत सर्वभाषात्मक- दिव्यध्वनि स्वरूपोऽहम् कोट्यादित्यप्रभासंकाशपरमोदारिक- दिव्यशरीरोह, परमपवित्राऽहं परममंगलोsहं, त्रिजगद्गुरु स्वरूपोऽहं स्वयम्भूरहं, शाश्वतीहूं, जगत्त्रयकालत्रयवतिसफल पदार्थ युगपदवलोकनसमर्थं सफल विमलकेवलज्ञानस्वरूपोऽहं विशदाखर डैक - प्रत्यक्षप्रतिभास मयसकल विमल के बल-दर्शन स्वरूपोऽहं श्रतीन्द्रियाया नूतनन्त सुख स्वरूपोहं, श्रवार्यंवीर्यानन्त बलस्वरूपोहं, प्रचिन्त्यानन्त गुण स्वरूपोऽहं निर्दोषपरमात्मस्वरूपोहं, सोहं ।" इत्यादि पदों द्वारा सविकल्प निश्चय भक्ति समझ कर निर्विकल्प स्वसंवेदन शान से स्वशुद्धात्मभाव अर्हन्त भगवान की प्राराधना भव्यजीवों को सदा करनी चाहिये, ऐसा श्री. कुन्देन्द श्राचार्य का अभिप्राय है । स्वावलम्बी रूपातीत ध्यान के विषय रूप सिद्ध परमेष्ठी का स्वरूप बतलाते हैं:-- ज्ञानावरणादि मूलोत्तर रूप सकल कर्मों से मुक्त, सकल केवल ज्ञानादि निर्मल गुरणों से युक्त, निष्क्रिय टंकोत्कीर्ण ज्ञायक एक स्वरूप किञ्चिदून अन्तिम - - घरम शरीर प्रमाण, अमूर्त, प्रखंड, शुद्ध चिन्मय स्वरूप, निर्ग्रन्थ सहजानन्द सुखमय शुद्ध जीव घनाकार स्वरूप, नित्य निरंजन निर्मल निष्कलंक, ऊर्ध्वगति स्वभाववाले, उत्पाद, व्यय तथा धौव्य से संयुक्त तीनों लोकों के स्वामी, लोकाग्र निवासी, तथा त्रैलोक्य वंद्य श्री सिद्ध परमेष्ठी का ध्यान करने वालों को नित्य सुख की प्राप्ति होती है। इस प्रकार व्यवहार भक्ति करने के पश्चात् एकाग्रता पूर्वक भगवान का ध्यान इस प्रकार करना चाहिये । "ज्ञानावरणादिमूलोत्तररूपस कलकर्म विनिर्मु कोऽहं, सकल विमलकेवलज्ञानादिगुणसमेतोऽहं निष्क्रियटंकोल्कीज्ञायकैकस्वरूपोऽहं किंचिन्यूनान्त्यचरमशरीरप्रमाणोऽहं श्रमूर्त्तोऽहं प्रखण्डशुद्धचित्त, निर्व्यग्रसहजानन्दसुखमयस्वरूपोऽहं शुद्धजीवचनाकारोऽहं नित्योऽहं, निरंजनोऽहम् जगत्त्रयपूज्योऽहं निर्मलोऽहं निष्कलं कोऽहं, ऊर्ध्वगतिस्वाभावोऽहं लोकाग्रनिवासोऽहं त्रिजगत दितोऽहं श्रनन्तज्ञानस्वरूपोऽलं, अनन्तदर्शनस्वरूपोऽहं श्रनन्तवीर्यस्वरूपोऽहं श्रनन्तसुखस्वरूपोऽहं अनन्तगुणस्वरूपोऽहं, अनन्तशक्तिस्वरूपोऽहं अनन्तानन्तस्वरूपोऽहं निवेंगस्वरूपोऽहं निमोंहि S
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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