SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २६५) अर्थ-पंच परमेष्ठी के नाम रूप मन्त्राक्षर अत्यन्त प्रबल कर्मशत्रु को नाश करनेवाले हैं, प्रबल मिथ्यात्व ग्रह को भगानेवाले हैं, दुष्ट कामदेव रूप सर्प के विष को निर्विष करनेवाले हैं, रागादि परपरिणति से होनेवाले कर्मासव को रोक देते हैं, इन्द्र धरणीन्द्र पदवी को प्रदान करनेवाले हैं, मोक्ष लक्ष्मी को मोहित करनेवाले हैं तथा सरस्वती को मुग्ध करनेवाले हैं । प्रागे पदस्थ ध्यान का वर्णन करते हैं:-- परगतीससोलछप्परण चदुलुगमेगंच जवह झाएह । परमेट्ठिवाचयारणं अण्णंचगुरुत्रएसेन ॥१०॥ परगतीस-रगमो प्ररहंतारणं, णमो सिद्धारणं णमो पाइरियाणं, एमो उनझायाणं गमो लोए सव्वसाहूरगं । ऐसे पैतीस अक्षरों का मंत्र हैं। सोल-परहंत-सिद्ध-पादरिया भाषा-साहू ऐग सोलह अक्षर का मन्त्र है छ प्ररहंत सिसा तथा 'अरहंत सिद्ध' यह छै अक्षरों के मन्त्र हैं । परण असि प्रा उ सा यह पांच अक्षरों का मन्त्र है । यदु असि साहु या अरहंत यह चार अक्षरों के मन्त्र हैं। दुरहं असि तथा शिद्ध यह दो अक्षरों का मन्त्र है। एगञ्च अ अथवा है या प्रोम ऐसे एक अक्षरों के मन्त्र, जवह जप करना चाहिए। झाएह धवलरूप में ललाटादि प्रदेश में स्थापना करके ध्यान करना चाहिए और गुरुवएसेण परम गुरु के उपदेशों से परमेट्टिवाचयारण परमेष्ठी वाचक को तथा अपरगञ्च लघु वृहत सिद्धिचक्र चिन्तामणि मंत्र के क्रमानुसार द्वादश सहस्र संख्या सहित पंच परमेष्ठी ग्रन्थ में कहे हए मंत्र को निर्भर भक्ति से निर्वाण सुख की प्राप्ति के लिए सदा जपना तथा ध्यान करना चाहिए। ((आगे अहं शब्द की व्याख्या करते हैं। प्रकारः परमोबोधो रेफो विश्वावलोकहक् । हकारोऽनन्तवीर्यात्मा विन्दुस्स्यादुत्तमं सुखम् ।।३८।। अर्थ-'अहं' शब्द में 'अ' अक्षर परम ज्ञान का वाचक है, 'र' अक्षर समस्त लोक के दर्शक का वाचक है, ह अक्षर अनन्त बल का सूचक है बिन्दु (बिन्दी) उत्तम सुख का सूचक है ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy