________________
(२१२) पुरुषों की समस्त प्रापत्ति, संसार का सन्ताप, तथा समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष पद प्राप्त हो जाता है।
मंगळ कारण पंचप-। दंगळनपवर्गविरचित सोपा। नंगळनक्षय मन्त्रप-। दंगळ नोदुदुनेरेय्यनिश्चळमतिथि ॥२१०॥
अर्थ-समस्त सुख के कारण, मोक्ष की सीढी के समान पंच नमस्कार मन्त्र को सदा निश्चल मन से जपना चाहिए।
बलवद्भूत पिशाच राक्षस विषं व्यायाधेय पिंगुकु। वळियिषफु रिपुराम चोर भयमंदुःखाग्रशोक गळ ॥ गळियिक्कु घळियिककुमेल्लदेशेयिबोळ पंजगन्मुख्यमं। गळमीपंचगुरुस्तवं शुकृति प्रत्यूहविध्वंसनं ॥२१॥
अर्थ--पंच परमेष्ठी के स्मरण से बलवान भूत पिशाच, राक्षस, विष, सपं की बाधा नष्ट होती है और शत्रुभय, राजभय, चोरभय तथा अनेक प्रकार के अन्य दुखों का नाश होता है तथा समस्त कर्मों का ध्वंस करनेवाला है एवं समस्त संसार में उत्कृष्ट मङ्गलकारक है ।
त्रैलोक्य क्षोभोमंत्र त्रिजगदधिपकृत्पंचकल्याणळक्ष्मी । साम्राज्याकर्षणमंत्र निरुपमं परम श्रीवघ्यश्यमंत्र । वाक्सोमाव्हनमंत्र त्रिभुवनजनसंमोह मन्त्रं । जिन्हाग्रे संततं पंचगुरुनमस्कार मंत्रममास्तु ॥२१२॥
प्रर्य-मह पंच नमस्कार मन्त्र तीन लोकों को कंपा देता है, तीन लोकों में सर्वोत्तम गर्भावतरण, जन्माभिषेक, दीक्षा कल्याणाक, केवलज्ञान तथा लक्ष्मी को आकर्षण करके देनेवाला है। अनुपम उत्कृष्ट मोक्ष लक्ष्मी को वश में करके देनेवाला यह मन्त्र है। ज्ञानरूपी चन्द्रमा का उदय करनेवाला है। त्रिलोकवर्ती समस्त प्राणियों को मोहित करनेवाला है । ऐसा अतिशय शाली अहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय सर्च साधु के नमस्कार रूप मन्त्र मेरी जीभ पर सदा निवास करे ।
घनफर्म द्विधिमारणं प्रवल मिथ्यात्वोग्रहोच्चाटनं । कुनयाशीविषनिविषीकरणमापापास्रवस्तंभनं ॥ विनुताहिंद्र मिदल्ते सुरेंद्र मुक्तिळळना संमोहनं भारती। बनिसावश्यमिवल्ते पंचपरमेठि नाममंत्राक्षरं ॥२१३॥