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धन, धान्य, दासी, दास इत्यादि ग्रहण किये हुए अपने समस्त परिग्रहों के प्रति प्रगाढ़ प्रेम करते हुए ऐसी भावना करना कि यह सब हमारे हैं, इसे हमने संचय किया है, यदि मैं न रहूं तो ये सब नष्ट हो जायंगे और इनके नष्ट हो जाने से मैं भी नष्ट हो जाऊंगा, ऐसा सोचकर अत्यन्त मोह से संरक्षण करना विषय संरक्षणानंद चौथा रौद्रध्यान है ।
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इस प्रकार चारों रौद्रध्यानों में मन वचन कायपूर्वक व्रत कारित तथा श्रनुमोदना द्वारा ग्रानन्द मानने के भेद होते हैं । और उनमें से प्रत्येक चारों के मिलाने से ३६ होते हैं ये ध्यान अत्यन्त कृष्ण, नील तथा कापोत लेश्यावाले होकर मिथ्या हृष्ट्यादि पांच गुणस्थान वाले होते हैं । ये नरक गति बन्ध करनेवाले होते हैं। परन्तु वद्धानुष्य के बिना तीव्र संक्लेश परिणामी होने पर भी सम्यग्दृष्टि को नरकायु का बंध नहीं होता ।
auri दर्शविष
अर्थ - - १ - पायविचय, २ उपायविचय, ३- जीव विचय, ४जीव विचय, ५ विपाक वित्रय, ६--विरागविचय, ७ भववित्रय, ८संस्थान विचय, ९ – आशाविषय और १० कारण विचय ये धर्म ध्यान के १० भेद होते हैं।
१ - संसार में मन, वचन काय से सम्पादन किए हुए अशुभ कर्मों के नाश होने का चिंतनमनन करना श्रपायविचय है । कहा भी है कि संसार में अनन्त दुःख हैं:
तावज्जन्मातिदुःखाय ततो दुर्गतता सदा । तत्रापि सेवया वृत्तिरहो दुःखपरम्परा ॥
प्रथम तो जन्म ही दुःख के निमित्त होता है, फिर दरिद्रता और फिर समें भी सेवावृत्ति । ग्रहो ! कैसी दुःख की परम्परा है ।
२- प्रशस्त मन वचन काय के बिना अशुभ कर्मों का नाश कदापि नहीं हो सकता, ऐसा विचार करना उपायविचय है ।
३- यह जीव ज्ञान-दर्शन उपयोगवाला है द्रव्याविकनय से इसका मन्त नहीं ग्रर्थात् यह चिरस्थायी है, कभी नष्ट नहीं होता। अपने द्वारा सम्पादित शुभाशुभ कर्मों का फल स्वयमेव भोगता है। अपने द्वारा प्राप्त किये हुए स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर को स्वयमेव धारण करता है, संकोच विस्तार तथा ऊर्ध्वगमन करने वाला भी ग्राम ही है, कमों के साथ सदा काल से सम्बन्ध करनेवाला