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( २६०) तीर्थंकरों के गर्भ जन्म कल्याणक में-सिद्धभक्ति, चारित्रभक्ति शान्ति भक्ति। दीक्षाकल्यणक
- सिद्ध भक्ति, चारित्रभक्ति, योगिभक्ति
शांतिभक्ति। ज्ञानकल्याणक
---सिद्ध, श्रुत, चारित्र, योगि, शांति
भक्ति । निर्वाणकल्याण
- सिद्ध, श्रुत, चारित्र, योगि, निर्वाण
और शांतिभक्ति। वीरनिर्वाण- सूर्योदय के समय – सिद्ध भक्ति, निर्वाण, पंचगुरु, शांति
भक्ति । श्रुतपंचमी
वृहत्सिद्धभक्ति, वृहत्व तभक्ति श्रुतस्कंध की स्थापना, बृहत्वाचना, बृहत्
तभक्ति, प्राचार्य भक्ति पूर्वक स्वाध्याय, श्रुतभक्ति द्वारा स्वायध्याय की पूर्णता अन्त में शांति भक्ति कर क्रिया
पूर्णता श्र तपंचमी के दिन गृहस्थों को -सिद्ध, श्रत, शांतिभक्ति सिद्धांत वाचना
सिद्ध, अ तभक्ति द्वारा प्रारम्भ १ तभक्ति प्राचार्यभक्ति कर वाचना अन्त में श्रुत
और शांति भक्ति। गृहस्थों को सन्यास के प्रारम्भ में -सिद्ध, श्रत, शांतिभक्ति । गृहस्थों को सन्यास के अन्त में -सिद्ध, श्रत, शांति वर्षायोग धारण करते समय --सिद्ध, योगि, चैत्यभक्ति । वर्षायोग धारण की प्रदक्षिणा में -यावन्ति जिनत्यानि, स्वयम्भ स्तोत्र
की दो स्तुति चैत्यभक्ति । वर्षायोग स्वीकार करते समय --गुरुभक्ति शान्ति भक्ति। वर्षायोग समाप्ति में
--वर्षायोग धारण करने की पूर्णविधि प्राचार्यपद ग्रहण करते समय -सिद्ध, प्राचार्य शान्ति भक्ति । प्रतिमायोग धारण करने वाले सिद्ध, योगि, शान्ति भक्ति । मुनि की वन्दना करते समय
यदि चतुर्दशी की क्रिया चतुर्दशी के दिन न हो सके तो पौरिणमा वा अमावस्या के दिन अष्टमी की क्रिया करे अर्थात् सिद्ध, श्रुत, चारित्र और शांति भक्ति पदे।