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________________ दीक्षा ग्रहण करते समय-- वृहत्सिन भक्ति, लघु योगिभक्ति । दीक्षा के अन्त में सिद्धभक्ति । केशलोंच करते समय लघु सिद्धभक्ति, लघु योगिभक्ति । लोच के अन्त में-- सिद्धभक्ति। प्रतिक्रमण में सिद्ध, प्रतिक्रमण, वीरभक्ति, चतुर्विशति तीर्थकरभक्ति । रात्रियोग धारण--- योगिभक्ति । राश्रियोग का त्याग-- योगिभक्ति । वेव वन्दना में दोष लगने पर--- समाधिभक्ति । सामान्य ऋषि के स्वर्गवास होने । पर उनके शरीर और निषद्या को सिद्ध, योगि, शान्तिक्ति । क्रिया में सिद्धांतवेत्ता साधु के स्वर्गवास में- सिद्ध, श्रत, योगि, शान्तिभक्ति । उत्तर गुणधारी साधु के स्वर्गपार | सिध, रि, : आशिभक्ति । होने पर उत्तरगुणधारी सिद्धान्तवेत्ता साधु | सिद्ध, श्रुत चारित्र योगिशांति भति के स्वर्गवास पर प्राचार्य के स्वर्गवास होने पर -- सिद्ध, योगि, प्राचार्य, शांतिभक्ति सिद्धांतवेत्ता प्राचार्य के स्वर्गवास पर--- सिद्धश्रु त योगि प्राचार्य शांतिभक्ति उत्तरगुराधारी प्राचार्य के स्वर्गवास | सिद्ध चारित्र योगि प्राचार्य शांति पर । भक्ति । उत्तरगुणधारी सिद्धांत वेत्ता भाचार्य । सिद्ध, श्रुत, योगि, प्राचार्य शान्ति के स्वर्गवास पर | भक्ति । पाक्षिक प्रतिक्रमण में ---सिद्ध, चारित्र, प्रतिक्रमण, बीर भक्ति, चतुर्विंशतिभक्ति, चारित्रालोचना गुरुभक्ति, बृहदालोचना, गुरुभक्ति, लघुप्राचार्य भक्ति । चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में वार्षिक प्रतिक्रमण में
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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