SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) उनकी समस्या सुलझाई और कुलकर अरधिज्ञानी तो नहीं थे किंतु विशेष ज्ञानी थे, जाति स्मरण के धारक हुए थे उन्होंने उस समय कल्प वृक्षों की हानि के द्वारा लोगों की कठिनाइयों को जानकर उनका प्रतीकार करके जनता का कष्ट दूर किया। कुलंकरों का दूसरा नाम मनु भी है। इसका खुलासा इस प्रकार है:-- सूष म दु:षमा नामक तीसरे कालमें पल्य का पाठवां भाग प्रमाण समय जब शेष रह गया तब स्वर्ण समान कांति वाले प्रतिश्रुति कुलंकर उत्पन्न हुए। उनकी प्रायु पल्यके दशवें भाग १ प्रमाण थी उनका शरीर अठारासौ १८०० धनुप ऊंचा था और उनकी देवी (स्त्री) स्वयंप्रभा थी। उस समय ज्योतिरांग कल्पवृक्षों का प्रकाश कुछ मंद पड़ गया था इसलिये सूर्य और चंद्रमा विस्ताई देने लगे, सुमन का 'पौर सूर्याई दिये वह आषाढ़ की पूर्णिमा का दिन था । यह उस समय के लिये एक अद्भुत विचित्र घटना थी, क्योंकि उससे पहले कभी ज्योतिरांग कल्पवृक्षों के महान प्रकाश के कारण सूर्य चन्द्र आकाश में दिखाई नहीं देते थे। इस कारण उस समय के स्त्री पुरुष सूर्य चन्द्र को देखकर भय भीत हुए कि यह क्या भयानक चीज दीख रही है, क्या कोई भयानक उत्पात होनेवाला है। ' तब प्रतिश्रुति कुलकर ने अपने विशेष ज्ञान से जानकर लोगों को समझाया कि ये आकाश में सूर्य चंद्र नामक ज्योतिषी देवों के प्रभामय विमान हैं, ये सदा रहते हैं। पहले ज्योतिरांग कल्पवृक्षों के तेजस्वी प्रकाश से दिखाई नहीं देते थे किंतु अब कल्प वृक्षोंका प्रकाश फीका हो जाने से ये दिखाई देने लगे हैं । तुम को इनसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं, ये तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं करेंगे। प्रतिश्रुति के आश्वासन भरी बात सुनकर जनता निर्भय, संतुष्ट हुई । प्रतिधुति का निधन हो जाने पर तृतीय काल में जब पल्य का अस्सीवां भाग शेष रह गया तब दुसरे कुलकर सन्मति उत्पन्न हुए । उनका शरीर १३०० सी धनुष ऊंचा था और आयु पल्य के सो कर भाग प्रमाण थी, उनका शरीर सोने के समान कांति वाला था। उनकी स्त्री का नाम यशस्वती था । उनके समय में ज्योतिरांग [तेजांग] कल्पवृक्ष प्राय: नष्ट हो गये अतः उनका प्रकाश बहुत फीका हो जाने से ग्रह, नक्षत्र तारे भी दिखाई देने लगे । इन्हों पहले स्त्री पुरुषों ने कभी नहीं देखे थे, अतः लोग इन्हें देखकर बहुत घबराए कि यह क्या कुछ है, क्या उपद्रव होने वाला है। तब सन्मति कुलकर ने अपने विशिष्ट ज्ञान से जानकर जनता को समझाया कि सूर्य चन्द्रमा के समान ये भी
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy