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________________ ( ११ ) तय चटु पंचमे सक्काले परम दुम्महायसारा ॥ विविह कुदेव कुलिंगि सत्तकत्थ पामित्था ॥६॥ चंडाल सबर पारणा पुलिंद गाहल चिलाल पहुडिकुला ॥ दुस्समकाले afer नकक्की होंति चावाला ॥ १० ॥ प्रचिठि अरगाउठ्ठि भूवडिड वज्ञ श्रग्गिपमुहाय ॥ विहारखानोटा विद ॥ ११ ॥ अर्थ - - तृतीय चतुर्थ पंचम काल में श्री जैन धर्म के नाशक कई प्रकार के कुदेव कुलिंग दुष्ट पापिष्ट ऐसे चंडाल शबर पान नाहल चिलातादि कुल बाले खोटे जीव उत्पन्न होते हैं । तथा दुःखम काल में कल्कि और उपकल्कि ऐसे ४२ जीव उत्पन्न होते हैं । तथा अति वृष्टि अनावृष्टि भूवृद्धि बानि इत्यादि अनेक प्रकार के दोष तथा विचित्र भेद उत्पन्न होते हैं । और इस भरत क्षेत्र के हुडावसर्पिणी के तृतीय काल के अंत का ग्राठवां भाग बाकी रहने से कल्प वृक्ष के बीर्य की हानि रूप में कर्म भूमि की उपपत्ति का चिन्ह प्रगट होने से उसकी सूचना को बतलाने वाले मनुनों के नाम बतलाते हैं । ॥ चतुर्वक्ष कुलकराः इति ॥५॥ अर्थ -- इस जंबू द्वीप के भरत क्षेत्र की अपेक्षा से प्रतिभूति १ सन्मति २ क्षेमंकर ३ क्षेमंधर ४ सीमंकर ५ सीमंधर ६ विमल वाहन उचक्षुष्मान यशस्वी ६ अभिचंद्र १० चंद्राभ ११ मरुदेव १२ प्रसेनजित १३ नाभिराज ऐसे चौदह कुलंकर अथवा मनु पूर्वभव में विदेह क्षेत्र में सत्पात्र को विशेष रूप से आहार दान दिया। उसके फल से मनुष्यायु को बांधकर तत्पश्चात् क्षायिक सम्यक्त को प्राप्त करके वहां से लाकर इस भरत क्षेत्र के क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर कुछ लोग अवधिज्ञान से और कुछ लोग जातिस्मरण से में हानि उत्पन्न होती है उसके स्वरूप को समझते हैं । वे कल्प वृक्ष की सामर्थ्य इस प्रकार हैं: - ये सभी कुलकर पूर्व भव में विदेह क्षेत्र में क्षत्रिय राज कुमार थे, मिथ्यात्व दशामें इन्होंने मनुष्य श्रायु का बंध कर लिया था। फिर इन्होंने मुनि आदिक सत्पात्रों को विधि सहित भक्ति पूर्वक दान दिया, दुःखी जीयों का दुःख करुणा भाव से पूर किया । तथा केवली श्रुत केयली के पद मूल में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया। विशिष्ट वान के प्रभाव से ये भोगभूमि में उत्पन्न हुए । इनमें से अनेक कुलकर पूर्वभव में अवधि ज्ञानी थे, इस भवमें भी अवधिज्ञानी हुए । श्रतः अपने समयके लोगों की कठिनाइयों का प्रतिकार अवधि ज्ञान से जानकर
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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