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________________ प्रश्न--मूल प्रायश्चित्त का भागी कौन है ? उत्तर-पार्शस्थ, कुशील, संसक्त अवसन्न तथा मृगचारी ऐसे पांच मुनि स्वच्छन्द वृत्ति हैं। अब इनके लक्षण बतलाते हैं: __ वसतिक में प्रेम रखनेवाले, उपकरणों को एकत्रित करनेवाले, मुनि समुदाय में न रहनेवाले पार्शस्थ कहलाते हैं । क्रोधादिकषायों से युक्त ब्रत गुणों से च्युत संघ के अपाय के लिए वैद्य मन्त्र ज्योतिष द्वारा इधर उधरघूम फिरकर जीवन निर्वाह करने वाले कुशील कहलाते हैं। रागादि सेवा में युक्त जिन वचन से अनभिज्ञ चारित्र भार से शून्य ज्ञानाचार से भ्रष्ट तथा करुणा में आलसी रहनेवाले संसक्त कहलाते हैं। ___ गुरुद्रोही स्वच्छन्दचारी, जिन वचन में दोष देखनेवाले अवसान कहलाते हैं। जिन धर्म में बाह्मचरणी उन्मादी, महा अपराधी पार्श्वस्थ की सेवा करने वाले मृगनारी आदि मुनियों को मूलखेद प्रायश्त्ति दिया जाता है। पालोचनञ्च ॥४॥ अकम्पित, अनुमानित, दृष्ट, बादर सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन अव्यक्त, तत्सेवित ये प्रायश्चित के १० भेद हैं। चतुर्विध विनयः॥४६॥ अर्थ- ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय तथा उपचार, ये विनय के चार भेद हैं। शुद्ध मन से मोक्ष मार्ग के लिए जो ज्ञान, ग्रहण, शान अभ्यासादि किया जाता है उसे ज्ञानविनय कहते हैं । ___ द्वादशांग, चतुर्दश प्रकीर्णकादि श्रुतज्ञान समुद्र में जितने भी अक्षर हैं उनके प्रति और पदों के प्रति निःशंकित रूप से पूर्ण विश्वास करना वर्शनविनय वाहलाता है। ज्ञान, विनय दर्शन, तप, वीर्य तथा चारित्र से युक्त होकर दद्धर नपस्या में लीन तथा माधुओं की त्रिकरण शुद्धि पूर्वक बिनय करना चारित्रविनय है। प्रत्यक्ष उपचार विनय र परोक्ष उपचार विनय ये उपचार विनय के दो भेद हैं। इसमें से प्राचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणाधरदि पूज्य परमऋषि
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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