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क्षय के मार्ग में विरोध न हो इस अभिप्राय से इच्छाओं को, रोकना [ इच्छा निधिस्तपः ] तप' कहलाता है। वह तप त्रानशन, अवमोदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान रस परित्याग, विवक्त शयनासन तथा कायक्लेश ये ६ बाह्य तप हैं और प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान ये ६ प्रकार के अन्तरंग तप हैं । इस प्रकार दोनों मिलकर १२ प्रकार के तग हैं।
मन्त्र साधनादि किसी लौकिक स्वार्थ सिद्धि का अभिप्राय न रखकर , तथा इन्द्रिय संयम की यानि की इच्छा न रखकर ध्यान स्वाध्याय एवं प्रात्म
शुद्धि के अभिप्राय से पचेन्द्रियों के विषयों का तथा कषायों के त्याग के साथ जो चार प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है उसको अनशन तप कहते हैं। इसके नियत काल और अनियत काल ये दो भेद होते हैं ।
नियतकाल-एकान्तर विरात्रि, महारात्रि अष्टोपदास, पक्षोपवास, · मासोपवास, चातुर्मासोपवास, परणमायोपना संबलोपारा इत्पासि काल पर्यादा को लिए हुए उपवास करना नियत कालोपवास है ।
अनियत काल-समाधिमरण करने के समय आयु-पर्यन्त जो उपवास किया जाता है वह अनियत काल है।
अवमोदयं-ध्यानाध्ययन में किसो प्रकार को वाधा न हो, इस अभिप्राय से भूख से कुछ कम आहार लेना अवमोदर्य तप है।
व्रतपरिसंख्यान-इस प्रकार की वस्तु चर्या के समय मिले, अमुक व्यक्ति अमुक वस्तु लेकर खड़ा हो, या अमुक घर प्रादि की घटपटी आखड़ी लेकर चर्या के लिए निकलना व्रतपिरसंख्यान कहलाता है । घी, दूध, दही आदि रसों में से किसी एक या सबका त्याग करता रसपरित्याग नत कहलाता है। पदमासन, पल्यङ्कासन, बजासन' मकरमुखासन आदि प्रासनों से बैठना या एक पार्श्व दण्डासन मृतशय्यासनादि आसनों से अथवा शुद्धात्म ध्यानाध्ययन में किसी प्रकार का कोई विघ्न न हो ऐसे स्त्री पुरुप परन्तु आदि से रहित एकान्त स्थान में ध्यान करने के लिए बैठ जाना, विविक्तशय्यासन कहलाता है । निरुपाधि निजात्मभावना पूर्वक कंकड़ोली पथरीली जमीन में शरीर के मोह को छोड़कर कठिन तप करना कायक्लेश तप है।
फायक्लेश तप करने के कारण:
शुभ ध्यानाभ्यास के लिए, दुःख नाश के लिए, विषय सुख की निवृत्ति के लिए तथा परमागम को प्रभावना के लिए जो ध्यान किया जाता है उससे