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( २५२ ) अर्थ-५ समिति तथा ३ गुप्ति ये ८ प्रवचनमातृका हैं । - चतुस्त्रिंशदुत्तरगुणाः ॥४४॥
अर्थ-२२ परीषह और १२ प्रकार के तप ये कुल ३४ उत्तर गुण कहलाते हैं।
द्वाविंशत् परिषहाः ॥४५॥
अर्थ-मोक्ष मार्ग के साधन में आने वाले कष्ट विघ्न बाधा परिषह हैं। वे २२ हैं।
उनके नाम ये हैं-(१) क्षुधा, (२) पिपासा, (३) शीत, (४) उष्ण, (५) दंशमशक, (६) नग्नता, (७) अरति, (८) स्त्री, (९) निषद्या, (१०) पर्या, (११) शय्या, (१२) प्राक्रोष, (१३) बध, (१४) याचना, (१५) अलाभ, (१६) रोग, (१७) तणस्पर्श, (१८) मल, (१९) सत्कार पुरस्कार, (२०) प्रज्ञा, (२१) अज्ञान और [२२) अदर्शन ।
ये २२ परिषह पूर्वोपाजित कर्मों के उदय से होते हैं । किस कर्म के उदय से कौन सी परिषह होती है, इसका वर्णन करते हैं।
ज्ञानावरण कर्म के उदय से प्रज्ञा और अज्ञान परिषह होती हैं। दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से प्रदर्शन परिषह तथा अन्तराय कर्म के उदय अलाभ परिषह होती है।
__ चारित्र मोहनीय के उदय से नग्न, अरति, स्त्री, निषद्या, पाकोश, याचना, सत्कार पुरस्कार ये सात परिषह होती हैं । वेदनीय कर्म के उदय से
क्षुधा, पिपासा, शीत, उरण, दशमच्छर, चर्या, शय्या, वध, रोग तथा तणस्पर्श, • और मल ये ११ परिषह हाती हैं।
प्रश्न-एक साथ एक जीव के अधिक से अधिक कितनी परिषह हो सकती हैं ?
उत्तर-शीत उष्ण इन दोनों में से एक होगी, निषद्या, चर्या और शय्या इन तीन परिषहों में से एक परिषह होती है, शेष दो नहीं होती इस तरह तीन परिषहों के सिवाय शेष १६ परिषह एक साथ एक कालमें हो सकती हैं। सातवें गुणस्थान तक सभी परिषह होती हैं। अपूर्वकरण नामक आठवें गुणस्थान में तथा सवेद अनिवृत्ति करण गुणस्थान में प्रदर्शन परिषह कम हो जाने के कारण २१ परिषह होती हैं । तदनन्तर ३ वेदों के नष्ट हो जाने पर अनिवृत्तिकरण के निर्वेद भाग में स्त्री परिषह न रहने के कारण तथा परति परिषह न होने से १६ परिषह होती हैं। तत्पश्चात् मान कषाय के प्रभाव हो जाने पर नग्नता, निषद्या, पाकोश, याचना, सत्कार पुरस्कार इन पांचों परिषहों