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का स्पर्श होना तथा 'यह मांस है' ऐसा संकल्प हो जाना; आहार के ये ३२ अन्तराय हैं ।
इनमें से यदि कोई एक भी अन्तराय आ जाय तो मुनियों को आहार नहीं ग्रहण करना चाहिए | इसके विषय में और भी कहा है कि:विण्मूत्राजितरक्तमांसमंदिरावूयास्थिवान्लोक्षखा
दस्पृश्यान्त्यजभाषरण व रतात् स्वग्रामा क्षरणात् ॥ प्रत्याख्याननिसेवनात् परिहरेद् भव्यो व्रतो भोजनऽप्याहारं मृतजन्तुकेशकलितं जैनागमोक्तक्रमम् ॥ कागामज्जाद्दीरोहारुहिरंचसुपादं च ।
दिपक चैव ॥
बहू हेठा परिसंघ
ब्रह्मचर्य की भावना - ( १ ) स्त्रियां के राग उत्पन्न - कारक कथानों के कहने सुनने का त्याग, स्त्रियों के अंगोपांगों के देखने का त्याग करना, पहले भोगे हुए इन्द्रियजन्य सुखों का स्मरण न करना, शरीर का संस्कार न करना इन्द्रिय मद-वर्द्धक खाद्य व पेय पदार्थों की अरुचि रखना; ये पांच नियम ब्रह्मचर्य व्रत के हैं ।
गुप्तित्रयम् ॥४२॥
अर्थ-मन गुप्ति, वचन गुप्ति, तथा कायगुप्ति, ये तीन प्रकार की
गुप्तियां है ।
कालुस्स मोहसा रागं बोसादिश्रसहभावस्स । परिहारो मागुती ववहारयादु जिरण भरियं ॥ १० ॥ राज चोर भंडकहादिवयास पावहे उस्स परिहारो वचगुत्ती प्रलियाणि एत्ति वयरवा ॥ ११ ॥ छेदन बंधन माररण तहपसारस्गाबीय । कायकिरियारियट्टी रिएहिठ्ठा कायगुप्तोति ॥ १२ ॥ रागाविरिणयत या मनस्स जारगाहि तं मनोगुति । प्रतियारिपयत वा मौनं वा होदि वचगुती ॥१३॥ referry काम्रो सग्गो सरीरंगे गुत्ति । हिंसादिरिंगत वा सरीरगुत्ती हवेदित्तो ॥ १४॥ प्रष्ट प्रवचनमातृका ॥ ४३ ॥