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________________ ( २५० ) ग्रामदाहे महायुद्ध शुना दष्टेल्विदं पयि । सचित्तोदे करे क्षिप्ते शंकाया मलमूत्रयोः॥४६॥ शोरिगतमासधर्मास्थिरोमविट्पूयसूत्रके । दलनं कुट्टनं छिदियॊपप्रध्वंसदर्शने ॥५०॥ मोती स्पृष्टे च नग्नस्त्री-दर्शने मृतजंतुके । अस्पृश्यस्य ध्वनौ मृत्युवाद्य दुष्टविरोघने ॥५१॥ फर्कशानन्ददुश्शब्दे शुनकस्य ध्वनौ श्रुते हस्तमुक्त व्रते भग्ने भाजने पतितेऽथवा ।। ५२॥ पादयोश्च गते मध्ये मार्जारमूषिकादिके । प्रस्थ्यादिमल-मिश्रान्ने सचित्तवस्तुभोजने ॥५३॥ प्रातरोनाविदुयाने कामचेष्टोद्भबेजप च । उपविष्टे पदग्लानात् पतने स्वस्य मूर्च्छया ।।५४॥ हस्तान्च्युते तथा ग्रासेऽवतिना स्पर्शने सति । अयं मांसोऽस्ति संकल्पेऽन्तरायश्च मुनेः परे ।।५।। अर्थ-सिर ताडन करना, मौन का त्याग कर देना, मार्ग में गिर पड़ना, मांस हड्डी रक्तादि अपवित्र वस्तुओं का स्पर्श होना, मुर्दे को देखना, नगर व ग्राम में अग्मि लगने का हाल सुनना, भयंकर युद्ध की बातचीत सुनना, मार्ग में कुत्तों का कलह होना या उनके द्वारा काटना, भोजन के समय अपने हाथ में अप्रासुक पानी पड़ना, आहार के समय में मलमूत्र की शंका होना, रक्त मांस, चर्म, हड्डी केश, विष्टा खून तथा मूत्र आदि अपवित्र पदार्थों का स्पर्श होना, जिस घर में आहार हो उसमें चक्की चलना, धान कूटना, उल्टी हो जाना या दूसरों की उल्टी देखना, बिल्ली का स्पर्श होना. कोई जीव मर जाना, चांडाल आदि के शब्दों को सुनना, नग्न स्त्री का दीख जाना, मृतक वाद्य सुनना, किसी दुखिया के करण क्रन्दन या कर्कश शब्द सुनना, लड़ते हुए कुत्ते के शब्दों को सुनना, भोजन करते समय बन्धी हुई अँजुली छूट जाना, ब्रत भंग होना, हाथ से नीचे पात्रों का गिरना, दोनों पैरों के बीच से चूहे-बिल्ली का निकल जाना, भोजन में हड्डी या कचरा आदि मल मिश्रित होना, बिना पका ही भोजन करना, यर सचित्त पदार्थों में अचित्त पदार्थ मिलना, मनमें आर्त, रौद्र इत्यादि दुनि का प्रा जाना, मन में काम वासना उत्पन्न होना, अशक्त होकर नोचे बैठ जाना, या मूछित होकर गिर पड़ना, हाथ से ग्रास गिर जाना, अवती
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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