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________________ ( २४७ ) भाषण ये सत्य व्रत को पांच भावनायें हैं । लोगों के छोड़ कर गये हुए स्थानों में रहना, बाधा पड़े ऐसे स्थानों में न रहना, भिक्षाशुद्धि, चल रहना ये अचौर्यव्रत की पांच को त्यागना ५ अनुवीचि शून्यागार में रहना, दूसरे दूसरे के माने जाने में सद्धर्म में रुचि रखना अर्थात् हमेशा भावनायें हैं । शब प्रहार में आने वाले ४६ दोषों को बतलाते हैं : उद्गम दोष १६ सोलह, उत्पाद दोष १६ सोलह, ऐवरणा दोष दश, संयोजन दोष चार । पहले उद्गम दोषों को कहते हैं : -- उदिदष्ट, अध्यवधि, पूर्ति, मिश्र, स्थापित, बलि, प्राभृत, प्राविष्कृत, क्रीत, प्रामृष्य, परिवृत, ग्रहित, उद्भिन्न, मालिका रोहण, श्राच्छेद्य और निःसृत, इस प्रकार ये सोलह उद्गम दोष कहलाते हैं । अब अनुक्रम से इसका वर्णन करते हैं— छः कायिक जीवों को घात कर साधु के निमित्त तैयार किये हुये श्राहार को लेना, प्राक में अप्रासुक मिले हुये श्राहार को लेना, किसी पाखंडी के निमित्त तैयार किया हुआ प्रहार, अपने घर के बर्तन में बनाये हुये आहार को दूसरे बरतन में निकाल कर अर्थात् अलग निकाल कर अपने घर में या दूसरे के घर रक्खे हुये आहार को लेना, किसी बलि के निमित्त तैयार किये हुये आहार को लेना, समय को अतिक्रम करके लाये हुये ग्राहार को लेना, अंधेरे में तैयार किये हुये आहार को लेना, बलि के निमित्त तैयार किये हुये आहार में से निकाल कर अलग रक्खे हुए आहार को लेना, अति पक्व किये हुये आहार को लेना, ठंडे आहार में गरम आहार को मिलाकर लेना, पहले से ही किसी ऊपर के स्थानों में अलग निकाल कर रक्खे हुये आहार को उतार कर लेना, कोई दाता अपने घर से आहार लाकर किसी दूसरे दाता के घर में रखकर कहे कि तुम्हारे घरमें यदि कोई साधु आ जाएँ तो आहार को देना क्योंकि मुझे फुरसत नहीं है इस तरह कहकर रक्खे हुए बाहार को लेना, किसी बरतन में बहुत दिनों से बन्द कर खखे हुए बरतन को दाता के द्वारा तोड़कर आहार को लेना, अपने घमंड से दूसरे के ऊपर दबाव डालकर तैयार किये गये अन्न को लेना, दान मद के द्वारा तैयार किये गये अन्न को लेना, प्रधान दाताओं के द्वारा तैयार किया हुआ महार लेना, अधिक मुनियों को प्राता देख भोजन बढ़ाने के लिये दाता द्वारा श्रपस्व पदार्थ मिलाये हुए श्राहार को लेना, ये सोलह उद्गम दोष हैं । आगे उत्पाद दोष को कहते हैं- दाता के आगे दान ग्रहण करने से पूर्व
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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