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( २४०) श्रीमन्मेरौ कुलाद्रौ रजतगिरिवरे शाल्मली जंबुवृक्ष। . . क्षारे चत्यवृक्षे रतिकररुचके कुडले मानुषांके । . इष्वाकारेञ्जनाद्रौ दधिमुखशिखरे व्यंतरे स्वर्गलोके । ... ज्योतिर्लोकेभिवंदे भुवनमहितले यानि ,त्यालयानि ॥ . देवासुरेन्द्रनरनागसचितेभ्यः, पापप्रणाशकरभव्यमनोहरेभ्यः । घंटाध्वजाविपरिवारविभूषितेभ्यः नित्यं नमो जगतिसर्वजिनालयेभ्यः ॥ ... . इच्छामि भंते चेइभत्ति काउसम्गो को तस्सालोचेउ', अहलोयतिरियलोयउढ़ लोयम्मि किट्टिमाकिट्टिमाणि जाणि जिनचेइयाणि ताणि सब्यारिण तिसुवि लोयेसु भवणवाणवितरजोइसियकप्पवासियत्ति चउविहा देवा सपरिवारा दिमोगा नवेग, दिलेग चुरोग, निललेगा वाण निकदेण पहाणेण, णिच्चकालं अचंति पुज्जति वंदति, रणमंसंति, ग्रहमवि इह संतो तत्थ संताई, णिच्चकालं अच्चेमि पूजेमि वंदामि, रामसामि, दुक्खक्खयो, कम्मक्खनो बोहिलाहो सुगइगमरणं समाहिमरणं जिणगुणसम्पत्ति होउ मज्झं 1 .. इस तरह लघु चैत्यभक्ति पढ़ने के बाद खड़े होकर नौ बार णमोकार मन्त्र पढ़कर कायोत्सर्ग करे । तत्पश्चात् बहुत आनन्द प्रसन्नता से भगवान के मुख का दर्शन करना चाहिए। जिस तरह चन्द्रमाके उदय होने पर चन्द्रकान्त मरिण से जल निकलने लगता है, इसी प्रकार भगवान का मुखचन्द्र देखते ही नेत्रों से आनन्द जल निकलना चाहिए। उस प्रानन्दात्रु जल से भीमे हुए नेत्रों से अनादि भवों में दुर्लभ अर्हन्त परमेश्वर की महिमामयी प्रतिमा का हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए पुलकित मुख से अवलोकन करना चाहिए, अष्टांग अथवा पंचाग नमस्कार करना चाहिए। आदि अन्त में दण्डक करके चैत्य-स्तवन (प्रतिमा की स्तुति) करते हुए तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए । फिर बैठकर मालोचना करे।
तदन्तर 'पंच, रुभक्तिकायोसर्ग करोमि' रूप प्रार्थना करके खड़े होकर पंच परमेष्ठी की स्तुति करनी चाहिए । स्तुति इस तरह है
श्रीमदमरेंद्रमुकुटप्रघटितमणि किरणवारिधाराभिः । प्रक्षालितपयुगलान्प्रणमामि जिनेश्वरान्भक्त्या ॥१॥ प्रष्टगुरणः समुपेतापरणटदुष्टाष्टकर्मरिपुसमितीन् । सिद्धान्सततमनन्तान्तान्नमस्क रोमीष्टतुष्टिसंसिद्ध्यै ॥२॥