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________________ ( २३७ ) संसार को समस्त स्त्रियों, देवियों आदि से २१६ प्रकार के अतिचार सहित विषयवासना का त्याग करना ब्रह्मचर्य महाव्रत है। २१६ अतिचार पीछे ब्रह्मचर्य धर्म के स्वरूप में बतला चुके हैं। ___ दश प्रकार का बहिरंग और १४ प्रकार अन्तरङ्ग परिग्रह त्याग कर अणुभात्र भी पर-पदार्थ ग्रहण न करना अपरिग्रह महाबत है। जिस मार्ग पर मनुष्य, हाथी, घोड़े, गाय, बैल आदि पशु चलते रहते हों ऐसे मार्ग पर चार हाथ आगे को भूमि देखकर चलना ईर्या समिति है.। . __ काम कथा, युद्ध कथा, कठोर वारणी आदि का त्याग करके हितकारक, परिमित, प्रिय तथा प्रागम-अनुक्कल वचन बोलना भाषा समिति है। मन कृत, मन कारित, मन अनुमोदित, वचन कृत, वचन कारित, बचन अनुमोदित, काय कृत, काय कारित, काय अनुमोदित, इन नौ कोटियों से शुद्ध भिक्षाचर्या से शुद्ध कुलीन श्रावक के घर, दाता को रंच मात्र भी दुख न देते हुए, राग द्वेष रहित होकर शुद्ध भोजन करना एषरणा समिति है। ज्ञान के उपकरण शास्त्र, संयम के उपकरण पीछी, शौच के उपकरण जल' रखने के कमण्डलु को अच्छी तरह भूमि पेशकर (प्रतिलेखन करके) रखना और देख भाल कर उनको उठाना प्रादान निक्षेपरण समिति है । जीव-जन्तु-रहित एकान्त स्थान में नगर के बाहर दूर प्रदेश में जहां दूसरों को बाधा न हो, वहां पर मलमूत्र करना प्रतिष्ठापन समिति है। . . _स्पर्शनेन्द्रिय सम्बन्धी इष्ट अनिष्ट विषयों में राग द्वेष का त्याग करना ११ वां मूल गुण है। रसनेन्द्रिय के इष्ट अनिष्ट विषयों में राग द्वष को त्याग कर देना १२ वा मूल गुण है। . नाणेन्द्रिय के इष्ट अनिष्ट विषयों में रागद्वेष को त्याग देना १३ वां मूल गुण है। ___चक्षु इन्द्रिय के इष्ट अनिष्ट विषय में राग द्वष को त्याग देना १४ वा मूल गुण है। श्रोनेन्द्रिय विषय-सम्बन्धी इष्ट अनिष्ट विषयों में राग द्वेष का त्याग कर देना १५ वां मूल गुण है। सर्व प्राणियों में समताभाव रखकर आत्मचिन्तन करना समता या सामायिक नाम का १६ वां मूल गुण है।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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