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( २३६ ) त्याग, ३ वस्त्र त्याग, ४ पृथ्वी पर सोना, ५ दिन में एक बार भोजन, ६ खड़े होकर भोजन करना और ७ कोश लोंच; ये उन मूलगुणों के नाम हैं । मुनि चारित्र के मूल कारण ये २८ प्रकार के बत होते हैं।
५ महानत स्पर्शन, रसना, घाण, नेत्र, कर्ण, मन बल, वचन बल कायबल, पायु और श्वासोच्छ्वास ये ससारी जीव के १० प्राण हैं इनको मन वचन काय, कृत कारित, अनुमोदन, संरम्भ, समारम्भ, प्रारम्भ तथा क्रोध मान माया लोभ, चारों कषायों के १०८ भंगों (३ योग x ३ कृतकारित अनुमोदन x ३ संरम्भ . समारम्भ प्रारम्भ x ४ क्रोध सान माया लोभ = १०८) से घात न करना अहिंसा महावत है।
विसी काम को स्वयं करना कृत है, अन्य किसी के द्वारा कराना कारित है, किसी के किये हुए कार्य की सराहना (प्रशंसा) करना अनुमोदना है। किसी कार्यको करने का विचार करना संरम्भ है, कार्य करने की साधनसामग्री जुटाना समारम्भ है तथा कार्य करने का प्रारंभ करना प्रारम्भ है। इनके भंग निम्न प्रकार से बनने हैं
[१] मन कृत संरम्भ, [२] मन कृत समारम्भ, [३] मन कृत आरम्भ, [४] मन कारित संरम्भ, [५] मन कारित समारम्भ, [६ [ मनकारित प्रारम्भ, [७] मन अनुमोदन संरम्भ, [८] मन अनुमोदन समारम्भ, [६] मन अनुमोदन प्रारम्भ । ये भंग एक मन योम के हैं। इसी प्रकार भंग वचन के हैं, ६ भंग काय के हैं। इस तरह तीनों योगों के २७ भंग होते हैं। ये २७ भंग क्रोध, मान, माया लोभ प्रत्येक कषाय के कारण हुमा करते हैं, अतः चारों कषायों के प्राश्रय से समस्त भंग १०८ होते हैं । ये १०८ भंग अनन्तानुबन्धी कषाय के हैं, इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन कषाय के भी १३-१०८ भंग होते हैं, अतः चारों प्रकार की कषायों के प्राश्रय समस्त ४३२ भंग होते हैं ।
इस प्रकार हिंसा के भेद प्रभेदों को समझवार समस्त हिंसा का त्याग करना अहिंसा महावत है।
राग द्वेष के कारण होने वाले असत्य भाषण का त्याग करना सत्य महावत है।
जल मिट्टी आदि पदार्थ भी बिना दिये ग्रहण न करना अचौर्य महालत है।