SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३४) यदि कोई मनुष्य गाली दे, मुक्का लात डंडे आदि से मारे, तलवार, छुरा आदि से मारे अथवा प्राणरहित कर दे तो अपने मन में क्रोध भाव न लाकर, यों विचार करना कि मैं भेदात्मक तथा अभेदात्मक रत्नत्रय का धारक हूँ मुझे किसी ने मानीलहीं दी. के - शस्नो आयल किया और न मुझे कोई अपने चैतन्य प्राणों से पृथक कर सकता है, ऐसी भावना का नाम उत्तम क्षमा है। ज्ञान, तप, रूप आदि आठ प्रकार का अभिमान न करना, अपने अपमान होने पर भी खेद खिन्न न होना तथा सन्मान होने पर प्रसन्न न होना मार्दव धर्म है। ___ मन वचन शरीर को क्रियाओं (विचार, वाणी और काम) में कुटिलता न आने देना प्रार्जव धर्म है। किसी भी पदार्थ पर लोभ न करके अपना मन पवित्र रखना शौच धर्म है। राग द्वष मोह आदि के कारण भूठ न बोलना सत्य धर्म है। सत्य १० प्रकार है-१ जनपदसत्य-भिन्न भिन्न देशों में बोले जानेवाले शब्दोंका रूढि अर्थ मानना । जैसे पकाये हुए चावलों को 'भक्त' कहना । २ सम्मतिसत्यअनेक मनुष्यों की सम्मति से मानी गई बात सम्मति सत्य हैं, जैसे किसी गृहस्थ को महात्मा कहना। ३ स्थापना सत्य-अन्य पदार्थ में अन्य को मान लेना जैसे पाषाण प्रतिमा को भगवान मानना । ४ बिना किसी अपेक्षा के व्यवहार के लिए कोई भी नाम रखना नाम सत्य है जैसे इन्द्रसेन आदि । ५ रूप सत्य-किसी के शरीर के चमड़े का काला गोरा आदि रंग देखकर उसे गोरा या काला प्रादि कहना । ६ अन्य पदार्थ की अपेक्षा से अन्य पदार्थ को लम्बा, बड़ा छोटा आदि कहना प्रतीत्य सत्य है । ७ किसी नय की प्रधानता से किसी बात को मानना व्यवहार सत्य है जैसे आग जलाते समय कहना कि मैं रोटी बनाताहूं। ८ संभावना (हो सकने) रूप वचन कहना संभावना सत्य है । जैसे इन्द्र जम्बू द्वीप को उलट सकता है । ६ आगमानुसार अतीन्द्रिय बातों को सत्य मानना भाव सत्य है । जैसे उबाले हुए जल को प्रासुक मानना। १० उपमा सन्म किसी की उपमा से किसी बात को सत्य मानना । जैसे गढ़े में रोम भरने आदि की उपमा से पल्य सागर आदि का काल प्रमाण । यह १० प्रकार का सत्य है। .. मन वचन काय की शुद्धि द्वारा किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार c..ASTR
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy