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यदि कोई मनुष्य गाली दे, मुक्का लात डंडे आदि से मारे, तलवार, छुरा आदि से मारे अथवा प्राणरहित कर दे तो अपने मन में क्रोध भाव न लाकर, यों विचार करना कि मैं भेदात्मक तथा अभेदात्मक रत्नत्रय का धारक हूँ मुझे किसी ने मानीलहीं दी. के - शस्नो आयल किया और न मुझे कोई अपने चैतन्य प्राणों से पृथक कर सकता है, ऐसी भावना का नाम उत्तम क्षमा है।
ज्ञान, तप, रूप आदि आठ प्रकार का अभिमान न करना, अपने अपमान होने पर भी खेद खिन्न न होना तथा सन्मान होने पर प्रसन्न न होना मार्दव धर्म है।
___ मन वचन शरीर को क्रियाओं (विचार, वाणी और काम) में कुटिलता न आने देना प्रार्जव धर्म है।
किसी भी पदार्थ पर लोभ न करके अपना मन पवित्र रखना शौच धर्म है।
राग द्वष मोह आदि के कारण भूठ न बोलना सत्य धर्म है। सत्य १० प्रकार है-१ जनपदसत्य-भिन्न भिन्न देशों में बोले जानेवाले शब्दोंका रूढि अर्थ मानना । जैसे पकाये हुए चावलों को 'भक्त' कहना । २ सम्मतिसत्यअनेक मनुष्यों की सम्मति से मानी गई बात सम्मति सत्य हैं, जैसे किसी गृहस्थ को महात्मा कहना। ३ स्थापना सत्य-अन्य पदार्थ में अन्य को मान लेना जैसे पाषाण प्रतिमा को भगवान मानना । ४ बिना किसी अपेक्षा के व्यवहार के लिए कोई भी नाम रखना नाम सत्य है जैसे इन्द्रसेन आदि । ५ रूप सत्य-किसी के शरीर के चमड़े का काला गोरा आदि रंग देखकर उसे गोरा या काला प्रादि कहना । ६ अन्य पदार्थ की अपेक्षा से अन्य पदार्थ को लम्बा, बड़ा छोटा आदि कहना प्रतीत्य सत्य है । ७ किसी नय की प्रधानता से किसी बात को मानना व्यवहार सत्य है जैसे आग जलाते समय कहना कि मैं रोटी बनाताहूं। ८ संभावना (हो सकने) रूप वचन कहना संभावना सत्य है । जैसे इन्द्र जम्बू द्वीप को उलट सकता है । ६ आगमानुसार अतीन्द्रिय बातों को सत्य मानना भाव सत्य है । जैसे उबाले हुए जल को प्रासुक मानना। १० उपमा सन्म किसी की उपमा से किसी बात को सत्य मानना । जैसे गढ़े में रोम भरने आदि की उपमा से पल्य सागर आदि का काल प्रमाण । यह १० प्रकार का सत्य है। ..
मन वचन काय की शुद्धि द्वारा किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार
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