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_ . ( २२८ ) अरिहंता अशरोरा, पाइरिया तह उवज्झाया मुरिणरणो । पढमक्खरनिप्पपणो, ओंकारो पंच परमेट्ठी ॥५॥ अरहंत सिद्ध पाइरिया, ऊवज्झायसाधु पंच परमेट्ठी।
ते बिहु चेत्तइ प्रदे तम्मा पाराहुभे शरण ।।६॥
एमो अरिहंतागणं, णमों सिद्धारगं, रामो पाइरियाणं, रामो उबझायाणं, एमो लाए सम्व सारण, इस पंच मनस्यार मंत्र के सबधिर ३५, अरिहंत, सिद्ध, प्राइरिया, उव झाया, साहू इन सोलह अक्षरों को, "अरहंत सिद्ध" ऐसे छ अक्षरों को "असि', या उ सा" इन पांच अक्षरों को 'अ सि साह" इन चार अक्षरों को "या सा' इन दो अक्षरों को, 'य' अहम् "ॐ" इस एकाक्षर को जिह्वा न पर लाकर इस तरह धीरे धीरे भात हुए, इसकी भावना की शक्ति भी कम हो जाने पर, बाह्य वस्तुओं से उपयोग हटाकर अपने निर्मल २.परूप को प्राप्त हो, शरीर भार को त्याग करना पंडित मरण है ।
पंचातिचाराः ३७।। अर्थ-जीविताशा, मरणाशंसा, भय, मित्रस्मृति और निदान ये पांच सल्लेखना के अतिचार हैं।
(१) हम नित्य यह भावना करते रहें कि हमें समाधि मरण हो, यदि यह मरण अभी प्राप्त हो तो अति अच्छा है 1 अथवा अभी थोड़े दिन जीवित रहने की इच्छा करना और विचारना कि यदि इसी समय मृत्यु हो जाय तो में क्या करूंगा, यह विचार "जीविताशा" है । २-परीषह होने पर, परीषह सहन में असमर्थ होते हुए विचारना कि इससे तो मृत्यु हो जाए तो अति अच्छा है इस प्रकार सोच विचार करना मरणाशंसा है।
३ इह लोक भय, परलोक भय, अत्राण भय, अगुप्ति भय, मरणभय, व्याधि भय, आगन्तुक भय, इस प्रकार सातों भयों से भयभीत होना सल्लेखना में भयातिचार है। '४-~-पुत्र, कलत्र, मित्र आदि बन्धुजनों का स्मरण करना, सो मित्र स्मृति है।
५-इस प्रकार समाधि मरण करके, परलोक और इह लोक में धन, वैभव ऐश्वर्य, प्रादि प्राप्त होने की भावना करना निदान नामक अतिचार है।
इस प्रकार समाधि मरण के फल से, सौधर्म आदि कल्पों (स्वर्ग) में इन्द्र प्रादि पद के सुख सुधा रस को अनुभव करते हुए, मनुष्य भव में तीर्थकर चक्रवयादि पद का अनुभव करके, जिन दीक्षा धारण कर समस्त घाति अधाति कर्म