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________________ बरतन देने वाले भाजनांग जाति के कल्प वृक्ष हैं ॥ २ ॥ स्वर्गीय अमृतमय भोजन के समान, तेज बल प्रायु और आरोग्य दायक ऐसे अमृतान्न को देने वाले भोजनांग जाति के कल्प वृक्ष हैं ।। ३ ।। पीने में स्वादिष्ट, शारीरिक बल बर्द्धक पाप को नष्ट कर मन को पवित्र करने वाला तथा प्रमाद को भी हरने वाला ऐसा समयोचित मधुर पेय पदार्थ जिनसे मिलता है, ऐसे पानांग जाति के वृक्ष हैं ।। ४ ।। अनेक प्रकार की मरिणयों से जड़े हुये, ज्यादा कीमती रेशम आदि के बने मन और इन्द्रियों को भाने वाले देवोपनीत वस्त्रों के समान मनोहर वस्त्रों को देने वाले वस्त्रांग जाति के कल्प वृक्ष हैं ।।५।। शरीर की शोभा को बढ़ाने वाले अत्यन्त मनोहरकेयूर कुण्डल मुद्रिका कर्ण, फूल मकुट, रत्नहारादिक को अर्थात् मनवांछित नाना प्रकार के आभूषणों को देने वाले भूषणांग जाति के वृक्ष हैं ॥ ६ ।। अति लुभावने वाली सुगंध को देने वाले जाति जूही, चंपा, चमेली, आदि नाना प्रकार के फूलों की माला को मालाकार के समान समयानुसार संपन्न कर देने वाले मालांग जाति के कल्प वृक्ष हैं ।।७।। दशों दिशाओं में उद्योत करने वाले मरिणमय नाना प्रकार के दीपकों को। हर समय प्रदान करते हैं ऐसे दीपांग जाति के कल्प वृक्ष हैं ||८|| भोग भूमियों के मन को प्रसन्न करने वाली ज्योति को निरंतर फैलाने वाले ज्योतिरंग जाति के कल्प वृक्ष हैं ।।६।। अति समतुल अावाज करने वाले घन भुषिर तथा वितत जाति के अनेक प्रकार के बादित्रों को देने वाले, ध्वनि से मन को उत्साह तथा वीरत्व पैदा करने वाले वाद्याँग जाति के कल्प वृक्ष हैं ॥१०॥ 1 गाथा-अवसप्परिण उस्सप्पिरिण कालच्छिय रहटघटेयरणायेण ।। होति प्रणतातो भरहैरावदखिदिम्मिपुडं ॥२॥ - अर्थ- भरत और ऐरावत इन दोनों प्रकार के क्षेत्रों में अरहट के घट के समान उत्सपिरगी के बाद अवसर्पिणी तथा अवसपिणी के बाद फिर उसपिणी इस प्रकार निरंतर अनंतानंत काल हो गये हैं और आगे होते रहेंगे।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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