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( २२६ ) दक्षिण द्वार पर करणानुयोग पढ़ते हुए सात मुनियों को नियुक्त कर दी है। इसी तरह पश्चिम द्वार पर चरणानुयोग पढ़ते हुए सात मुनियों को नियुक्त कर देते हैं, इसी प्रकार उत्तर द्वार पर द्रव्यानुयोग पढ़ते हुए सात मुनियों को नियुक्त कर देते हैं । तत्पश्चात् वह प्राचार्य समाधिप्रिय उस मुनिराज के पास पाकर इस प्रकार आदेश देते हैं कि तुम चारों प्रकार की आराधनाओं को पढ़ते रहो, इसके पश्चात् सात मुनियों को प्रादेश देते हैं कि तुम लोग चारों आराधनामों को उनके पास पढ़ते रहो, इस प्रकार उनको नियत कर बाद में समाधि के इच्छुक मुनि को पथ्यपान आदि को देते हुए उनके मल मूत्र को निर्विन्यपूर्वक बाहर निकालने के लिए पुकार के सात मुनियों को नियुक्त कर देते हैं । तत्पश्चात् चारों दिशाओं का अवलोकन करने के लिए गांव के बाहर जाकर, क्षाम, डामर, परिचक्र, देश, काल, राष्ट्र, ग्राम, राज्यादि की स्थिति, सुस्थिति देखकर, अपने मन में उन दोनों की परिस्थिति को ठीक विचार कर, उपर्युक्त कथनानुसार उसकी देखभाल करने के लिए दो मुनियों को नियुक्त करते हैं । पश्चात् समाधि के इच्छुक मुनि के पास समाधि मरण की विधि जानकार एक मुनि को नियुक्त कर देते हैं। फिर षोडश भावनाएं, चौंतीस अतिशय को, परम चिदानंद स्वरूप वीतराग निर्विकल्प समाधिस्वरूप को सभी मुनिजन सुनाते रहते हैं, उसको वह उपयोग पूर्वक सुनते हुए, प्रयत्न पूर्वक गुरु निरूपित क्रम से शरीर को त्याग करूं, ऐसी भावना करता है । जैसे नौकर को जहां तहां नियुक्त कर देते हैं, वैसे ही प्राचार्य देव अपने शिष्य मुनियों को उनकी वैय्यावृत्ति अथवा चारों अनुयोग पढ़ने के लिए नियुक्त कर देते हैं। इसके बाद वरअपनी इच्छापूर्वक गत्यन्तर होने वाले मरण को करता है, इस तरह के मरण को भक्त प्रत्याख्यान मरण कहते हैं ।
___ नो कर्म, द्रव्य कर्म और भाव कर्म इन तीनों कर्मों से रहित सहज शुद्ध केवल ज्ञान प्रादि अनन्त गुणों से सहित अभेद रत्नत्रयात्मक चीतराग निविकल्पक समाधि रूप समुत्पन्न हुए परमानन्द रूप, स्व-स्वभाव से चुत न होते हुये समाधि में रत रहते हैं । इस प्रकार समाधि में रत हुए मुनि के शरीर में कदाचित् शोत हो जावे तो शीत की बाधा को दूर करने के लिए उपचार तथा ज्यादा उष्ण हो जाने पर शीत की जाती है । अपने वो जो इष्ट हो पल्यंक-ग्नासन, मुक्तासन, या शय्या-वासन इनमें से कोई भो आसन निश्चय करके तत्कालोचित सम्पूर्ण क्रिया को करके तत्पश्चात्
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