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________________ (२२४) है, इसे आवीचि मरण भी कहते हैं । जैसे तालाब के चारों ओर से बन्धा हुआ पानी यथाक्रम झरते-झरते काल क्रम से समाप्त हो जाता है, तथैव जीव गर्भाधान से लेकर आयु के अन्त तक क्रमशः प्रायु कर्म की स्थिति दिन प्रतिदिन घटते २ पूर्ण हो जाती है, यह आवीचि मरण है। . जन्मान्तर प्राप्ति होने वाला मरण तद्भव-मरण है । शारीरिक वय्यावृत्ति के साथ होने वाला समाधि मरण भक्त प्रत्याख्यान है। स्वपरअपेक्षा से बैय्यावृति के बिना, स्वयं अपनी अपेक्षा भी न रखते हुए जो समाधि मरण होता है, वह इंगिनी मरण है । स्वपर वैय्यावृत्ति की अपेक्षा से जो मरण किया जाता है, यह भक्तप्रत्याख्यान मरण है । प्रायोपगमन मरण का अन्यत्र वर्णन है। (१) बात पित्त श्लेष्मादि शारीरिक दोषों से प्रति संक्लेश होने पर भी स्वधर्म और स्व-स्वभाव में अरचि आदि न करके स्वधर्म और स्वभाव में तल्लीन होकर जो मरण होता है, वह सम्यक्त्व मरण है। (२) सांसारिक कारणों से निवृत्ति-पूर्वक शारीरिक भार को त्याग करना समाधि मरण है। (३) निवृत्ति-पूर्वक, स्वात्मतत्व भावना-सहित शरीर का त्याग कर देना पंडित मरण है। (४) अर्घ्य और उल्लास के साथ, भेद-विज्ञान-पूर्वक शरीर त्याग करना वीर मरण है। (१) सम्यग्दर्जन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्र, और तप इन चार आराधमाओं से रहित मिथ्यादृष्टि जीव का जो मरण होता है, उसे बाल-बालमरण कहते हैं। (२) सम्यग्दर्शन आराधना से युक्त जो असंयत सभ्यग्दृष्टि का मरण होता है, उसे बाल-मरण कहते हैं। (३) सम्यग्दर्शन, ज्ञान तथा एक देशचारित्र धारण करके जो देशवती मरण करता है, उसको वाल पंडित मरण कहते हैं। (४) सम्यग्दर्शनादि चारों प्रकार की आराधनाओं सहित निरतिचार पूर्वक महाव्रती का मरण, पंडित भरण है। (५) उसी भव में कर्मक्षय करके सम।' मात्र में लोकारवासी होने वाले मरण को पंडित-पंडिन भरण कहते हैं। (१) सायुमरण (२) निरायुमरण, इस प्रकार भी दो भेद हैं ।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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