________________
( २२३) छोड़ दिये गये हैं। अब आगे संलेखना किस-किस अवसर में की जाती है। इसका वर्णन किया जाता है :
उपसर्गे दुभिक्षे जरसिरुजायाच निःप्रतीकारे ।
धर्मायतनु विमोचन-माहु संलेखना मार्याः ॥१॥ __ अर्थ-अर्थात् उपसर्ग दुर्भिक्ष वृद्ध अवस्था असाध्य रोग के हो जाने पर जो धर्म के लिए शरीर छोड़ा जाता है अर्थात् निश्चय और व्यवहार धर्म से प्रात्मा में लीन होकर शरीर को छोड़ना ही संलेखना है और यही शरीर छोड़ने का फल है । ऐसी निश्चय समाधि-विधि (मरण करने की विधि) श्री सर्वज्ञ देव ने कही है।
विषयेयन रमशंख्य भयसत्तम् गहत् सपतम् ग१रण सकिलेस सेकल्लेसोद ।
उस्साहरणन् निरोदधौ क्षिज्जयेाऊ २ अर्थ-कदली धात से जो मरण होता है उसे अकाल मृत्यु या मरण कहते हैं। जैसे कि रक्त का क्षय हो जाने रो, भय के कारण, शस्त्र प्रहार के कारण अथवा अधिक संक्लेश के कारण, श्वास के मिरोध होने के कारण, आहार निरोध के कारण, जल में डूबने के कारण, अग्नि दाह के कारण, इत्यादि कारणों से जो मरण होता है इसको कदलीघात मरण कहते हैं। इसके अतिरिक्त आयु कर्म का क्रमशः क्षय हो जाने पर जो मरण होता है। उसे सविपाक मरग कहते हैं । अब आगे मरण के भेद को बतलाने के लिए मूत्र कहते हैं -
मरणं द्वित्रिचतुःपंचविधवा।।३६॥ अर्थ · मरा दो तीन चार अथवा पाँच प्रकार का है। १ नित्य मरण और स्तद्भव मरण यह दो प्रकार का है ।
१ भक्तप्रत्याख्यान भरण, २ इंगिनी मरण, ३ प्रायोपभमन मरस: इस प्रकार मरगा के तीन भेद है।
१ सम्यत्व मरण, २ समाधि भरण, ३ पंडित मरा और ४ बीर मरण प्रकार से मरणके चार भेद हैं ।
१ बाल बाल मरण, २ बाल मरण, ३ बाल पंडित मरण, ४ पंडित मरण ५ पडित २ मरण इस प्रकार पंडित मरण के पांच भेद हैं।
आगे इस मरण का पृथक् रूप से कथन निम्न भांति है (१) पूर्वोपाजित प्रायु कर्म की स्थिति पूर्ण करके जो मरण होता है वह नित्य मरण