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करने के लिए प्रायश्चित यादि लेकर शुद्धि करता है। श्रावक स्वच्छन्द वृत्ति से चलकर प्राणि हिंसा नहीं करते हैं । यदि कभी उन से हिंसा होती है तो उसका प्रायश्चित लेते हैं । यदि कभी गृह त्याग करने भावना होती है तो पुत्र को, पुत्र न हो तो अपने गोत्र के किसी सदाचारी बालक को दत्तक पुत्र बनाकर उस दत्तक पुत्र को अथवा अन्य भतीजे, भानजे आदि को अपनी समस्त सम्पत्ति सोंपकर उसको अपना उत्तराधिकारी बनाता है। उसको मीठे वचनों से समझाता कि "जिस तरह मैंने अब तक धर्म, अर्थ, काम इन तीन पुरुषार्थो का सेवन किया गृहस्थाश्रम, कुल मर्यादा, जातिमर्यादा तथा धर्ममर्यादा का पालन किया उसी तरह तू भी करना ।" इस तरह समझा कर भाप घर छोड़ मुनियों के चरणों में जाकर दीक्षा ले, धर्म सेवन करे ।
मरण- निमित्त - ज्ञान
दाहिनी काज को पुरुषी को सूर्य और बांयी श्रांख की पुतली को चंद्र कहते हैं । दोनों नेत्रों (पांखों) के ऊपरी निचलों पलकों के नेत्र को दो दो भाग कहते हैं ।
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१ - बांयी आँख (चन्द्र) केऊपरी पलकको उंगली से दबाने पर यदि नीचे की वस्तुएं दिखाई न पड़े तो समझना चाहिए कि छह मास के भीतर मृत्यु होगी । २ यदि उंगली से नीचे की पलकें दबाने पर ऊपर की ज्योति काम न दे यानी - ऊपर की वस्तुएं दिखाई न दें तो समझना चाहिए कि तीन मास में मृत्यु होगी ।
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३- बांयी प्रांख के प्रारंभिक भाग (नाक के निकट) दवाने पर कान की प्रोर दिखाई न दे तो दो मास में मृत्यु होने की सूचना है ।
४- यदि उस आंख के अंतिम भाग (कान की ओर से ) को दबाने पर नाक की थोर ज्योति दिखाई न दे तो एक मास में मृत्यु समझनी चाहिये ।
५- सूर्य आँख ( दाहिनी आंख ) के ऊपरी पलक को दबाने पर नीचे ज्योति दिखाई न पड़े तो समझना चाहिये कि १५ दिन में मृत्यु होगी ।
६- उसी नेत्र के नीचे के पलक को दबाने पर ऊपर की ज्योति न दीख पड़े तो आठ दिन में मृत्यु होगी ।
७ - उसी नेत्र के अंतिम भाग (कान के पास वाले) को दबाने पर कान की श्रोर ज्योति दिखाई न दे तो ६ दिन में मृत्यु होगी ।
८- इस नेत्र के मूल भाग ( नाक के पास ) को दबाने पर कान की ज्योति यदि दिखाई न दे तो एक दिन श्रायु शेष रही समझनी चाहिये ।