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________________ ( २१८) क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चारवर्ण हैं । इनमें से क्षत्रिय वर्णमें जन्म लेने वाले को जाति क्षत्रिय हैं। तीर्थङ्कर, नारागरण, बलभद्र चक्रवर्ती आदि महान पराक्रमी क्षत्रियतीर्थ क्षत्रिय होते हैं। भिक्षश्चतुर्विधः ॥३०॥ अर्थ-भिक्षु चार प्रकार के हैं-१ यति, २ मुनि, ६ अलगार, ४ देवऋषि (ऋषि)। यतयो द्विविधाः ॥३१॥ अर्थ-यति के दो भेद हैं-१ उपशम श्रेणी आरोहक (उपशम श्रेणी घढ़ने वाले), २ क्षपक श्रेणी प्रारोहक (क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाले)। मुनयस्त्रिविधाः ॥३२॥ अर्थ-मुनि तीन प्रकार के हैं-१ अवधिज्ञानी, २ मनःपर्ययज्ञानी, ३ केवलज्ञानी । ऋषयश्चतुर्विधाः ॥३३॥ अर्थ-ऋषि चार प्रकार के हैं ....१ ऋद्धि प्राप्त ऋषि ( ऋद्धिधारी ), २ ब्रह्मषि, ३ देवगि, ४ परमर्षि 1 तत्र राजर्षयो द्विविधाः ॥३४॥ अर्य-राजर्षि दो प्रकार के हैं-१ विक्रिया ऋद्धिधार, ३ अक्षीण ऋद्धिधारी ब्रह्मर्षि द्विविधः ।।३५।। अर्थ-ब्रह्मर्षि के दो भेद हैं-१ बुद्धि ऋद्धि धारक, २ भौषध ऋद्धिधारक । प्रकाश में गमन करने वाले देवर्षि हैं । अहंन्त भगवान परमऋषि हैं। . ब्रह्मचारी गृहस्थश्च बानप्रश्चश्च भिक्षुद्यः । इत्याश्रमास्तु जैनानां सप्तांगाद्वि निसृताः ॥ अर्थ-जनों के ४ आथम है- ब्रह्मचारी, २ गृहस्थ, ३ घानप्रस्थ और ४ भिक्षुक । ये सातवें उपासकाध्यय अंग से बतलाये गये हैं । (धाश्रमों का लक्षण पीछे लिखा जा चुका है।) . दर्शन प्रतिमा से लेकर उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा तक श्रावक के १० भेद हैं । इनके उत्तरभंग ६६ होते हैं। इसका विवरण अन्य ग्रन्थ से जान लेना चाहिए। श्रावक अपने गृहस्थाश्रम चलाने के लिये असिमसि आदि षट् कमों से अर्थ उपार्जन करता है, उससे वह जीव हिंसा से बचता रहता है। कदाचित कभी हिंसा उससे हो जावे तो पक्ष अष्टमी, चतुर्दशी मादि को उस दोष को दूर
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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