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दीक्षा, ४ गूढ तथा ५ नैष्ठिक ब्रह्मचारी ।
यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करके विद्याध्ययन करने वाले उपनयन ब्रह्मचारी है ।
क्षुल्लक रूप से समस्त शास्त्रों का अध्ययन करने वाले (बाद में गृहस्थआश्रम में जाने वाले ) अवलम्ब ब्रह्मचारी हैं ।
व्रतका चिन्ह (जनेऊ यादि ) धारण न करके समस्त शास्त्र पढ़कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वाले प्रदीक्षा ब्रह्मचारी है ।
वाल्य अवस्था में गुरु के पास रहकर समस्त शास्त्रों का अभ्यास किया हो, संयम धारण किया हो फिर राज भय से, या परिवार की प्रेरणा से अथवा परिषद् सहन न करने के कारण जो संयम से भ्रष्ट हो गया हो और बाद में गृहस्थ आश्रम में आा गया हो, वह गूढ ब्रह्मचारी है ।
व्रत के चिन्ह चोरी, जनेऊ, करधनी, श्वेतवस्त्र धारण करके ब्रह्मचर्य ग्रस लेकर रहने वाले नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं ।
श्राषट् कर्मारिए | २५
अर्थ - मार्ग ( गृहस्थाश्रमी आवक ) के ६ कर्म हैं । १ इज्या (पूजा), २ वार्ता ( धन उपार्जन विधि ), ३ दत्ति (दान), ४ स्वाध्याय (शास्त्र पढ़ना, सुनना ) ५ संयम ( जीवरक्षण तथा इन्द्रियों तथा मन का दमन ), ६ तप, ( उपवास एकाशन श्रादि बहिरंग, प्रायश्चित प्रादि अन्तरंग तप )
तत्र ज्या दशविधाः । २६ ।
पूजा है ।
अर्थ - पूजा १० प्रकार की है ।
देव इन्द्रों के द्वारा किये जाने वाली प्रर्हन्त भगवान की पूजा महामह
इन्द्रों के द्वारा की जाने वाली पूजा इन्द्रध्वज पूजा है ।
चारों प्रकार के देवों द्वारा की जाने वाली पूजा का नाम सर्वतोभद्र है। चक्रवर्ती के द्वारा की जाने वाली पूजा का नाम चतुमुखं पूजा है । विद्याधरों के द्वारा होने वाली पूजा का नाम रथावर्तन पूजा है । महामण्डलीक राजाओं के द्वारा की जाने वाली पूजा का नाम इन्द्रकेतु है। मंडलेश्वर राजा जिस पूजा को करते हैं वह महापूजा है । अर्द्ध मंडलेश्वर राजाओं द्वारा की जाने वाली पूजा का नाम महामहिम है ।