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________________ { २१४ ) अर्थ---जो मनुष्य रात को भोजन करते हैं वे भोजन के साथ चींटी आदि जीवों को खा जाते हैं । जो मनुष्य रात्रि भोजन करते हैं वे अन्य भव में छूले, लंगड़े, गूगे, बहरे आदि अपांग, लकड़हारे, घसियारे, नीचकुली, मैले कुचेले मनुष्य होते हैं । जो मनुष्य रात्रि भोजन त्याग देता है वह अपने कुल के भूषण तभा तीन लोक की सम्पदा को प्राप्त करता है । श्रावक धर्मश्चतुर्विध ॥२२॥ अर्थ-श्रावक का धर्म ४ प्रकार का है-१ दान, २ पूजा, ३ शील और ४ उपवास अपने तथा अन्य के उपकार करने के लिए जो आहार प्रादि पदार्थो' का त्याग किया जाता है वह छन ४ प्रकार का है-१ पाहार, २ औषध, ३ ज्ञान और ४ अभय । या देवशास्त्र गुरु की विधि अनुसार ८ द्रव्यों से पूजन करना पूजा है। अपने ग्रहण किये हुये व्रतों की रक्षा करना शील है । अष्टमी चतुर्दशी पंचमी आदि को पंप इन्द्रियों के विषय, कषाय तथा चारों प्रकार के ग्राहार का त्याग करना है। केवल जल ग्रहण करना अनुपवास (ईषत् उपवास-छोटा उपवास) है और एक बार भोजन करना एकाशन है। . जैनर नेरे जैनर केले । जैनर तनिष्ठे जैन धर्म श्रवणं । जनप्रतिमाराधने । जनगिकूडि बंदोडवने कृतार्थ ।१३१॥ अर्थ-जन चुल में जन्म लेकर मनुष्य भव सफल करने के लिए सदा जैन भाइयों की संगति करनी चाहिये, जैनों से मित्रता करनी चाहिए, जैन धर्म की श्रद्धा करनी चाहिए, जैन शास्त्रों का श्रवण करना चाहिये, जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा की प्राराधना करनी चाहिये । जैनाश्रमाश्च ॥२३॥ अर्थ-१ ब्रह्मचारी, २ गृहस्थ, ३ घाराप्रस्थ और ४ भिक्षु । विवाह करने से पहले ब्रह्मचर्य अाचरण से रहना ( विद्यार्थी जोवन ) ब्रह्मचारी पाश्रम है । विवाह करने के अनन्तर कुलाचार धर्माचार से रहना गृहस्थाश्रम है मुनि दीक्षा ग्रहण करने के पहले घर बार छोड़कर खण्ड वस्त्र धारण करके तपस्या करना वारणप्रस्थ पाश्रम है । सब परिग्रह त्याग कर मुनि दीक्षा लेकर महाव्रत धारण करना भिक्ष प्राश्रम है। ब्रह्मचारिणः पञ्चविधाः ।२४। अर्थ--ब्रह्मचारी ५ प्रकार के होते हैं । १ उपनयन, २ अवलम्बन, ३
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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