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________________ ( २०८ ) शिक्षानतों और गुणन्नतों का वर्णन हो चुका है। जैसे बाड़ खेत की रक्षा करती है उसी तरह शील अहिंसा आदि व्रतों को रक्षा करते हैं। अब अतिचार कहते हैं व्रतशीलेषु पंच पंचातिचाराः ॥१६॥ अर्थ-पांच व्रतों तथा ७ शीलों के ५-५ अतिचार होते हैं। व्रतों में कुछ त्रुटि होना अतिचार है । उन अतिचारों को बताते हैं--- १-- अहिंसाणुनत के ५ अतिचार हैं--- १- ररसी आदि से पशुओं को बांधकर रखमा २-उन्हें समय पर चारा पानी न देना, ३-डण्डे आदि से मारना, ४-उनकी नाना आदि छेदना, ५-अधिक बोझा लादना ये पांच अहिंसावत के अतिचार हैं ? २--सत्यारणुव्रत के पांच अतिचार १ मिथ्याल्व का उपदेश देना, सुनना, २ स्त्री पुरुषों की एकांत में सुनी हुई बात को सुनकर प्रगट करना ३ , कूट लेखादि' या झूठे लेखादि बनावटी बहीखाते लिखना ४ , किसी की रक्खी हुई धरोहर को घटा कर देना ५ , किसी भी तरह की चेष्टा से मन्त्र आदि का प्रकट करना , ये पाँच सत्याणुव्रत के प्रतिचार हैं ? ३ अचौर्याणुव्रत को पांच अतिचार १ स्वयं चोरी न करके चोरी का उपाय बताना, २ चोरी का धन लेना, ३ नापने तोलने के बांट कमती ज्यादा रखना, ४ राजा की प्राज्ञा का उल्लंघन करना, ५ अधिक मूल्य की वस्तु में कम मूल्य बाली वस्तु मिलाकर बेच देना; यह अचौर्याणुव्रत के पांच अतिचार हैं। ४ ब्रह्मचर्याणुव्रत के पांच प्रतिचार १ दूसरे का विवाह कराना, २ काम सेबन के लिए नियत अंगों के सिवाय अन्य अंगों से काम-क्रीड़ा करना, ३ काम की अधिक इच्छा रखना, ४ पति रहित स्त्रियों के घर आना जाना, ५ चुम्बन आदि में लालसा रखना, स्वदार संतोष व्रत के यह पांच अतिचार हैं। कहा भी है - अन्यविवाहकरणानंगक्रीड़ाविटत्वविपुलतृष-- इत्वरिकागमनं चास्मरस्य पंच व्यतीपाताः ॥ ५ परिग्रह परिमारग अणुयत के पांच अतिचार १ गाय भैस आदि का अधिक संग्रह करना २ घन आदि का अधिक संग्रह करना, ३ लाभ की इच्छा से अधिक भार लादना, ४ अन्य का ऐश्वर्य
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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