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________________ धूम्रवर्ण वाले मनुष्य जीवन पाकर क्रमशः बढ़कर दो हाथ के शरीर वाले हो जाते हैं ।। १ ।। पुनः दुःषम काल यह काल भी २१००० हजार वर्ष का होता है । इस काल के मनुष्य क्रम से बढ़कर सात हाथ की ऊचाई युक्त शरीर वाले हो जाते हैं बाकी सब कम पूर्वोक्त प्रकार से समझ लेना। इसी प्रतिपंचम काल के अंत में जब एक हजार वर्ष बाकी रहते हैं तब मनु लोग कुलकर उत्पन्न होकर तत्कालोचित सक्रियाओं का उपदेश करते हैं । प्रति दुःषम सुषम काल यह काल ४२ हजार वर्ष कम एक कोड़ा कोड़ी सागर का होता है। इस युग के मनुष्य पूर्वोक्त आयु काय से बढ़ते बढ़ते जाकर अंत में ५०० सौ धनुष की ऊंचाई ने शरीरवाले और एक करोड़ पूर्व की प्रायु वाले होते हैं। चउविसबारसतिगुणे तिथयरा छत्ति खंडभरहवही । तिक्काले होंति हातेवं ठिसलाकपुरिसाते ॥१॥ शेष ध्याख्यान पूर्ववत् समझना चाहिये । इस प्रकार ये तीनों काल अनवस्थित कर्म भूमि वाले होते हैं । पुनः सुषम दुःषमा चोथा, सुषमा पांचवां तथा सुषम सुषमा छठा इस प्रकार ये तीन काल अनवस्थित जघन्य, मध्यम और उत्तम भोगभूमि रूप में आते हैं जिनका प्रमाण दो कोड़ा कोड़ो सागर, तीन कोड़ा कोड़ी सागर और चार कोड़ा कोड़ी सागर का होता है जिन कालों में मनुष्य तथा स्त्रियां भी एक दो और तीन कोस की ऊंचाई के शरीर वाले तथा एक दो और तीन पल्य की आयु वाले होते हैं। दो-तीन दिन के बाद बदरीफल के प्रमाण एक बार पाहार को कर ने वाले होते हैं । प्रियंगु समान शरीर. चंद्रमा के समान शरीर और बालसूर्य के समान शरीर वाले होते है। कल्प वृक्षों द्वारा प्राप्त भोगोपभोग को भोगने वाले होते हैं। __मिथ्यात्वादि चार गुणस्थान वाले होते हैं । सम्यक्त्व सहितं होते हैं और संपूर्णक्रम पूर्वोक्त प्रकार होकर उनके शरीर की ऊंचाई आयु बल बढकर क्रम से बलशाली होते हैं। किन्तु इन्हीं पंच भरत और पंच ऐरावत क्षेत्र के विजयाचं पर्वत की श्रेणियों में तथा मलेच्छ खंडों में भी दु:पम सुषमा नाम का काल शुरु से अंत तक एव अंत से आदि तक हो ऐसी हानि वृद्धि होती है । इस प्रकार
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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