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________________ कम ताकत वाले शौचा चार से हीन, भोगादि में ग्रासक्त रहने वाले होते हैं ऐसे इस पंचम कालके अन्त में अंतिम प्रतिपदा के दिन पूर्वाग्रह में धर्म का नाश, मध्याह्न में राजा का नाश और अपराएह में अग्नि का नाश काल स्वभाव से हो जाएगा । छटवो अति दुषमा काल यह काल भी २१ हजार वर्ष का होता है सो आयु काय और बल कम होते होते इस छठे काल के प्रारम्भ में मनुष्यों शरीर की ऊंचाई दो हाथ की के आयु बीस वर्ष तथा धूम्र वणं होगा, निरंतर प्राहार करने वाले मनुष्य होंगे तथा इस छठे काल के अन्त में पन्द्रह वर्ष की आयु और एक हाथ का शरीर होगा। इस काल में षट् कर्म का प्रभाव, जाति पाति का अभाव, कुल धर्म का अभाव इत्यादि होकर लोग निर्भय स्वेच्छाचारी हो जावेंगे, वस्त्रालंकार से रहित नग्न विचरने लगेंगे मछली आदि का श्राहार करने वाले होंगे पशु पक्षो के समान उनकी जीवन चर्या होगी पति पत्नो का भी नाता नहीं रहेगा ऐसा इस छठे काल के अंत में जब ४६ दिन बाकी रहेंगे तब सात रोज तक तीक्ष्ण वायु चलेगी सात दिन अत्यन्त भयंकर शीत पड़ेगी सात दिन वर्षा होगी फिर सात दिन विष की दृष्टि होगी इसके बाद सात दिन तक अग्नि को वषां होगो जिससे कि भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्य खंडों में क्षुद्र पर्वत उपसमुद्र छोटी छोटी नदियाँ ये सब भस्म होकर संपूर्ण पृथ्वी समतल हो जावेगी और सात दिन तक रज और धुवाँ से आकाश व्याप्त रहेगा। इस प्रकार इन क्षेत्रों में चौथा पांचवा और छठा इन तीनों कालों में अनवस्थित कर्म भूमि होगी इसके अनन्तर जिस प्रकार शुक्लपक्ष के बाद कृष्णा पक्ष आता है उसी प्रकार अक्सप्रणी के। बाद उत्सर्पणी काल का प्रारंभ होता है जिसमें सबसे पहले अति दुषमा काल प्रारंभ होता है । प्रति दुषमा काल ____ इस काल में मनुष्यों की प्रायु १५ वर्ष और उत्सेध एक हाथ की होगी जो कि क्रमश: बढ़ती रहती है । इस काल के प्रारंभ में संपूर्ण आकाश धूम्रसे आच्छादित होने से पहिले के समान सात दिन तक लगातार पुष्करदृष्टि फिर सात दिन तक क्षीर वृष्टि, सात दिन तक घृतवर्षा, सात दिन तक इच्क्षुरस की वर्षा होकर पूर्व में विजयार्घ पर्वत की विशाल गुफा में विद्याधर और देवों के द्वारा सुरक्षित रखे हुए जीवों में से कुछ तो मर जाते हैं बाकी जो जीवित रहते हैं वे सब निकल कर बाहर आते हैं और वे अति मधुर मिष्टिान्न के समान होने वाली मृत्तिका के प्राहार को करते हुए वस्त्रालंकार से रहित होकर
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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