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________________ नहीं होता हैं । विष सपं समूह अकाल वर्षा तूफान दावानल इत्यादि उस भूमि में नहीं होता है, पुनः पंचेन्द्रिय सम्मूर्छन विकलेंद्रिय प्रसैनी पद्रिय अपर्याप्त जीव तथा जलचर जीव वहां नहीं होते हैं 1 स्थलचर और नभचर जाति के जीव युगल रूप से उत्पन्न होते हैं क्योंकि उस क्षेत्र में स्वभाव से परस्पर विरोध रहित तथा वहां पर होनेवाले सरस स्वादिष्टि तरा पत्रपुष फलादिको खाकर अत्यंत निर्मल पानी को पीकर तीन पल्यापम कालतक जीकर निज आयु अवसान काल में सुमरण मे मरकर देव गति में उपत्म होते हैं । सुषमा (मध्यम भोग भूमिका) काल मध्यम भोग भूमि का काल तीन कोडाकोड़ी सागरोपम होता है, सो उत्सेध आयु और बल आदि क्रमशः कम कम होते आकर इस काल के शुरू में दो कोस का शरीर दो पल्योपम आयु दो दिन के अंतर से फल मात्र आहार एकबार ग्रहण करते हैं, पूर्ण चंद्र के प्रकाश के समान उनके शरीर को कांति होती है, जन्म से पांच दिन तक अंगुष्ठ चूसते हुए क्रमशः ३५ दिन में संपूर्ण कला संपन्न होते हैं। बाकी और बात पूर्व की भांति समझना । सुषम बुषमा (अघन्य भोग भूमिका) काल यह जघन्य भोग भूमि का काल यानी तीसरा काल दो कोड़ा कोड़ी सागर का होता है, सो उत्सेध आयु तथा बल क्रम से कम होते होते इस काल के आदि में एक कोस का शरीर एक पल्योपम आयु और एक दिन अंतर से आँवला प्रमारण एक बार आहार लेते हैं । प्रियंगु (श्याम) वर्ण शरीर होता है। जन्म से सात दिन तक अंगुष्ठ चूसते हुए उनचास दिन में सर्वकला संपन्न बन जाते हैं, बाकी सब पूर्ववत् समझना ।।३। इस प्रकार यह अनवस्थित भोगभूमि का क्रम है। चौथा दुषमा सुषम काल ___ यह चौथा अनवस्थित कर्म भूमि का काल ४२ हजार वर्ष कम एक कोड़ा कोड़ी सागरोपम प्रमाण का होता है । सो क्रमशः घटकर इस काल के आदि में ५०० धनुष शरीर कोड़ पूर्व प्रमित प्रायु प्रति दिन आहार करने वाले पंच वर्ण शरीर महाबल पराक्रम शाली अनेक प्रकार के भोग को भोगने वाले धर्मानुरक्त हो कर प्रवर्तन करने वाले इस काल में त्रेसठशलाका पुरुष क्रम से उत्पन्न होते हैं, । पाँचवा दुषम काल जोकि २१ हजार वर्ष का होता है । उस काल के स्त्री पुरुष प्रारम्भ में १२० वर्ष की आयु वाले सात हाथ प्रमाण शरीर वाले रूक्षवर्ण बहु पाहारी
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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