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________________ युग के स्त्री पुरुष ६००० हजार धनुष को ऊंचाई वाले तथा तीन पल्योपम आयु वाले और तीन दिन के बाद बदरी फल के प्रमाण आहार लेने वाले होते हैं । उन के शरीर को कांति बाल सूर्य के समान होती है । समचतुरस्त्र संस्थान, वज्रवृषभनाराच संहनन तथा ३२ शुभ लक्षणों से युक्त होते हैं । मार्दव और आर्जव गुरण से युक्तबेसत्य सुकोमल सुभाषा भापी होते हैं, उनकी बोली मृदु मधुर वीणा के माद के समान होती है, वे ९००० हजार हाथियों के समान बल से युक्त होते हैं। क्रोध लोभ, मद, मात्सर्य और मान से रहित होते हैं, सहज १, शारीरिक २ प्रागंतुक ३ दुःख से रहित होते हैं। संगीत प्रादि विद्याओं में प्रवीण होते हैं, सुन्दर रूप वाले होते हैं, सुगंध निःस्वास वाले होते हैं तथा मिथ्यात्वादि चार गुरणस्थान वाले हति है, उपशमादि सभ्यत्व के धारक होते हैं, जघन्य कापोत पीत, पद्म, और शुक्ल लेश्या रूप परिणाम वाले होते हैं, निहार रहित होते हैं, अनपवर्त्य आयु वाले होते हैं, जन्म से ही बालक कुमार यौवन और मरण पर्याय से युक्त होते हैं, रोग शोक खेद और स्वेद प्रादि से रहित, भाई बहिन के विकल्प से रहित, परस्पर प्रेमवाले होते हैं । आपस में प्रेम पूर्वक दंपति भावको लेकर अपने समय को बिताते हैं । अपने संकल्प मात्र से हो अपने को देने वाले दश प्रकार के कल्पवृक्षों से भोगोपभोग सामग्नी प्राप्तकर भोगते हुए आयु व्यतीत करते हैं, जब अपने आयु में नव महीने का समय शेष रह जाता है तब वह युगल एकबार गर्भ धारण कर फिर अपनी आयु के छ महीने बाकी रहें उसमें देवायु को बांधकर मरण के समय दोनों दंपति स्वर्ग में देव होते है। जो सम्यग्दष्टि जीव होते हैं वे सब तो सौधर्म आदि स्वर्ग में और मिथ्या दृष्टि जीव भवनत्रिक में जाकर पैदा होते हैं, यहाँ पर छोड़ा हुआ युगल का शरीर सुरन्त ही प्रोस के समान पिघल जाता है, उनके द्वारा उत्पन्न हुए स्त्री पुरुष के जोड़े तीन दिन तक तो अंगुष्ठ को चूसते रहते हैं, तीन दिन के बाद रेंगने लगते हैं फिर तीन दिन बाद चलने लगते हैं, फिर तीन दिन बाद उनका मन स्थिर हो जाता है फिर तीन दिनों बाद यौवन प्राप्त होता है फिर तीन दिन बाद कथा सुनने वाले होते हैं फिर तीन दिन बाद सम्यक्त्व ग्रहण करने योग्य होते हैं। इस प्रकार २१ दिन में संपूर्ण कला संपन्न हो जाते है । कनाड़ी पद्यपळिरुळोडेयर्बडव । पगे केळेयाळरसुजाति भेदविषस ॥ पंगणं मळिमागि तगु ।ळ्दगालिका गच्चुविनितुमिल्ला महियौळ् ।।१।। अर्थ-उस भूमि में रात और दिनका, गरीब और अमीर आदि का भेद
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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