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थे 'बहुधात अल्पफल' वाली वस्तुयें छोड़ देनी चाहिये । बहुधात अल्पफल-दायक अन्य पदार्थ, गोली हल्दी, सूरण, वन्द ताड़, शकरकन्द गोभी, अरबी, इत्यादि में अनन्त जीव होते हैं, अतः इनके खाने से घात अधिक होता है। फल थोड़ा मिलता है। तथा दो अन्त मुहूर्त बाद के मक्खन का भी दयालु श्रावक को त्याग कर देना चाहिये
कहा भी है--
जो पदार्थ अपनी प्रकृति के विरुद्ध हो, जिनके खाने रोने से स्वास्थ्य बिगड़ जावे, अनेक तरह के रोग जिनसे उत्पन्न हों, ऐसे पदार्थ अनिष्ट कहलाते हैं, उनका त्याग कर देना चाहिये । जैसे खांसी के रोग बाले को बर्फी, हैजे वाले को जल तथा अतिसार रोग वाले को दूध अनिष्ट है ।
जो पदार्थ सत्पुरुषों के सेवन करने योग्य न हों उन्हें अनुपसेव्य कहते हैं जैसे गाय का मूत्र आदि । ऐसे अनुपसेव्य पदार्थों का भी त्याग कर देना चाहिये।
इन ही अभक्ष्य पदार्थो के विषय में श्री समन्तभद्र प्राचार्य ने कहा है
अल्पफलबहुविधताम्मूलकर्माद्रारिण शृङ्गवेराणि । नवनीतनिम्ब कुसुमं कतकमित्येवमवहेयम् ॥ पदनिष्टं तद् प्रतयेद्यच्चानुपसेव्यमेतदपि जह्यात् । अभिसन्धिकृता विरतिविषयायोगात कृता भवति ।
यानी-बहुविघात, व सघात, मादक, अनिष्ट तथा अनुपसेव्य पदार्थों का अभिप्राय पूर्वक (समझ बूझकर) त्याग करना चाहिए।
अभक्ष्य पदार्थ त्याग कर देने पर जो पदार्थ खाने पीने योग्य (भोग्य) हैं तथा जो पदार्थ उपभोग ( बार बार मोगने में पाने वाले वस्त्र, भूषण, मोटर मकान आदि ) करने योग्य हैं उनका भी शक्ति और आवश्यकता अनुसार यम तथा नियम रूप से त्याग करना चाहिए।
__ जन्म भर के लिये त्याग करना यम है । मांस भक्षण,परस्त्री सेवन, वैश्या गमन, प्रादि महान कुकृत्यों का त्याग यम रूप से ( जन्म भर के लिए ) करना चाहिए।
दिन, पक्ष, ग्रास, घड़ी घंटा आदि कुछ समय की मर्यादा से त्याग करना नियम कहलाता है।
इस तरह भोग्य उपभोग्य पदार्थों का यम नियम रूप से परिमाण करना और शेष का त्याग करना भोगोपभोग परिमारण व्रत है ।