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________________ (s) वस्त्र, आभूषण श्रादि उपभोग वस्तुओं को समय की मर्यादा करके त्याग करना कि इतनी देर अमुक पदार्थ हम ग्रहण नहीं करेंगे, नहीं भोगेंगे, इसे भोगोपभोग परिमाण कहते हैं । उसमें संघात कारक, प्रमाद कारक, बहुबंध कारक, अनिष्ट और अनुपसव्य पदार्थों का यमनियम करना चाहिये। जिन पदार्थों के खाने से अस जीवों का घात होता है वे स घात कारक पदार्थ, मांस, मधु आदि है । जैसे कहा है -m श्रामासु च पक्कासुच विपच्यमानासु मांसपेशीषु । उत्पत्तिर्जीवानां तज्जातीनां निगोदानांम् ॥ यः पक्कं वाऽपक्वांवा पलस्यखण्डं स्पृशेच्च । हन्ति किलासौ खण्डं बहुकोटो नांहि जीयानाम् ॥ अर्थ -- मांस की डली कच्ची हो या पक्की, ( सूखी, अग्नि से भुनी ) हो उसमें उसी जाति के निगोदितया जीव सदा उत्पन्न होते रहते हैं । जो मनुष्य कच्चे पके, सूखे को छूता है वह भी करोड़ों जीवोंकी हिंसा करता है - यानी मांस छूते ही मांस के जीव मर जाते हैं । प्रमाद या नशा करने वाले चरस, भांग, गांजा, शराब आदि पदार्थों का त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि इन पदार्थों के खाने पीने से नशा होता है जिस से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । मद्यपान करने वाले को जाति-भेद आदि विवेक नहीं रहता। शराब पीने के कारण शराबी को प्रमाद अधिक होता है, विषय वासना जाग्रत होती है। मद्य सेवन करने वाले को अपनी स्त्री या माता का भेदभाव नहीं होता । उसके लज्जा ग्रादि सभी गुण नष्ट हो जाते हैं, उसके कामविकार बढ़ता जाता है। मद्य पीने वाले किसी दोष से बच नहीं सकते । पंक्ति- . भोजन या गोष्ठी में बैठने योग्य नहीं रहते । I तुरन्त व्याही हुई गाय का दूध तथा जिन पेड़ों में दूध निकलता हो उनके फल ( बरगद पीपर यदि ) का दूध, शहद इत्यादि को सदा के लिए छोड़ देना चाहिये । फुल, अचार, अदरक, प्याज, मूली की जड़, आलू, गाजर, श्रादि कंद चलित पदार्थ, यानो देर तक खखे रहने से जिन दाल साम आदि पदार्थों का रस बिगड़ गया हो, ऐसे पदार्थों के खाने से अनन्त जीवों का घात होता है । इसलिए इनको त्याग देना चाहिए। क्योंकि इनमें जीवघात बहुत होता है और फल थोड़ा होता है अतः
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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