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(१७) आमिव मे सदा ज्ञाने दर्शने चरणे तथा । प्रत्याख्याने ममात्मैव, तथा संसारयोगयोः ॥१२॥ एको में साश्वतश्चात्मा ज्ञानदर्शनलक्षरणः । शेषा बहिर्भबा भावाः सर्वे सांयोगलक्षणाः ॥१३॥ संयोग मला जीवेन प्राप्ता दुःख परम्परा । तस्मात् संयोग सम्बन्ध त्रिधा सर्वं त्यजाम्यहं ।।१४।। एवं सामायिकं सम्यक सामायिक मखण्डितम् । वर्ततां मुक्तिमानिन्या वशीचूर्णायितं मम ।।१५॥ शास्त्राभ्यासो जिनपतिनुतिः संगतिः सर्वदायें:, सद्वृत्ताना गुरगगरणकथा दोषवादे च मौनम् ।।१५।। सर्वस्यापि प्रिय हितवचो भावना चात्मतत्त्वे । संपद्यन्तां मम भवभवे यावदेतेऽपवर्ग ॥१६।। तव पादौ मम हृदये मम हृदयं तव पदद्वये लोनम् । तिष्ठतु जिनेन्द्र तावद्यावनिर्वाणसप्राप्तिः ॥१७॥ अरूखरपयथिहीरणं मताहीणं च जमये भरिणयं। तं खमउ गाण देव य मज्झवि दुक्खक्खयं दितु ॥१८॥ दुक्खक्खनो कम्मक्खनो समाहिमरण च बोहिलाहोय । मम होउ जगतबंधव जिरणवर तब च रगस रणरण ॥१६॥
इति सामायिक पाठ स्पर्शन,रसना,प्राण,चक्ष, कर्ण इन पांचों इन्द्रियों को अपने अपने विषय से रोककर अन्न, पान, खाद्य, लेह्य इन चार प्रकार के आहार को आठ पहर के लिए अष्टमी, चतुर्दशी पर्व दिनों में त्याग करना उपवास है । एक ही बार भोजन करना एक मुक्त या प्रोषध कहलाता है । प्रोषध (एकाशन) के साथ जपवास को प्रोषधोपवास कहते हैं, यानी-अष्टमी, चतुर्दशी के दिन उपवास और एक दिन पोछे एक दिन पहिले एकाशन करना । चारों प्रकार का प्राहार त्याग कर के पानी को रखलेना इसे भी एकाशन कहते हैं। सब सरस पाहार को त्याग कर अथवा नीरस पाहार को लेना अथवा कांजी (मा.) या पानी लेकर अन्न भोजन १६ पहर का छोड़ना भी प्रोषधोपवास अत है । ... अन्न, पान, गंध, पुष्प माला इत्यादि एक बार भोगे जाने वालो भोगवस्तु,