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पदार्थ दूसरों को देने से अपना प्रयोजन कुछ सिद्ध नहीं होता परन्तु उन पदार्थाः से अन्य व्यक्ति हिंसा कर सकता है । इसके सिवाय कुत्ता, बिल्ली, नौला आदि हिंसक जानवरों को पालना भी इसो ग्रनर्थदण्ड में सम्मिलित है।
खेती करने तथा बहत प्रारम्भी व्यापार करने, जिन उद्योगों में जीव हिंसा अधिक होती हो ऐसे कार्यो के करने की सम्मति तथा उपदेश देना 'पापोपदेश' अनर्थदण्ड है।
किसी की विजय (जीत), किसी की पराजय (हार), किसी की हानि किसी का लाभ, किगी का वध, भरण, रोग, इट-वियोग, अनिष्ट-संयोग आदि सोचना, विचारना, अपत्यान अगर्थदण्ड है । ऐसा करने से व्यर्थ पाप बन्ध हया करता है।
राग, टेप क्रोध, कामवासना, भय, शोक, चिन्ता दुर्भाव उत्पन्न करने वाली बातों का कहना, सुनना, सुनाना, पाल्हा आदिक पुस्तका का पढ़ना सुनाना, युद्ध की, तथा शिकार खेलने की बातें सुनना सुनाना द:थ ति अनर्थदण्ड
विना प्रयोजन पृथ्वी खोदना, जल बखेरना, आग जलाना, हवा करना पेड़ पौधे आदि तोड़ना मरोड़ना आदि कार्य प्रमादचर्या अनर्थदण्ड हैं।
इसके सिवाय पाप-बन्ध-कारक बिना प्रयोजन के जो कार्य हैं ये सभी अनर्थदण्ड हैं।
शिक्षावतानि चत्वारि ॥१७॥
अर्थ-शिक्षानत चार हैं-१ सामायिक, २ प्रोषधोपवास, ३ भोगोपभोग परिमारण, ४ अतिथिसंविभाग।
जिनके आचरण करने से उच्च चारित्र धारण करने की शिक्षा मिलती है उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं ।
सामायिक:
समस्त इष्ट पदार्थों से रागभाव और अनिष्ट पदार्थों से द्वैप भाव छोड़ कर समताभाव धारण करना, प्रात्मचिन करना, परमेष्ठियों का चिन्तवन करना, वैराग्य भावना भाना सामायिक है।
शरीर शुद्ध करतो, शुद्ध वस्त्र पहन कर एकान्त शान्त स्थान में मन वचन काप शुद्ध करके, सामायिक करने के समय तक पत्र पापों का त्याग करके पहले लिखी हुई विधि के अनुसार प्रातः, दोपहर, शाम को सामायिक करना पहला शिक्षानत है।