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________________ जीवों की हिंसा से उत्पन्न होता है और उसमें सदा (कच्चे, पक्के, सूखे मांस में) अनन्तों जीव उत्पन्न होते रहते हैं। मधु (शहद) मधु मक्खियों का फलों से चूस हुए रस का वमन (उल्टी, कय) है, अत: उसमें भी सदा अनेकों जीव उत्पन्न होते रहते हैं, इस कारण वह अभक्ष्य है। कनड़ी टीकाकार मूलगुणों को निम्नलिखित रूप में कहते हैंइदु सत्यां नुउियदुन्दय । वधूहरणमुयदि मद्य मांसं । मधुर्वे बिनितुमनु ळिबुदु । बुधसंदोहक्के मूल गणमीएंदु।१११॥ यानी-हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील का आंशिक त्याग रूप अगुब्रत तथा परिग्रह का परिमाण इन पांच अन्नतों के साथ मद्य, मांस मधु का त्याग होना पाठ मूलगुण हैं। •अन्य प्राचार्यों के मत में मूलगुग अन्य प्रकार भी बतलाये गये हैं___ सात व्यसनों को तथा मिथ्यात्व ( कुगुरु, कुदेव, कुधर्म की श्रद्धा ) का त्याग रूप पाठ मूलगुण हैं ।..तथा --- हिंसासत्यास्तेयादग्रह्मपरिग्रहाच्च वादरभेदाः । धू तान्मांसान्मद्याद्विरतिःग्रहिणामष्टमूलगुणाः ।। महोदुम्बरपंचकामिषमधुत्यागः कृपा प्राणिमाम् । नक्तंभुक्तिविमुक्तिराप्तविनुतिस्तोयं सुवस्त्रस्न तम्, एतेज्डौ प्रगुणा गुरगा गणधरैरागारिणां वरिणताः । एकेनाप्यमुना विना भुवि तथा भूतो न गेहाश्रमी ।। यानी-किसी प्राचार्य के मतानुसार पूर्वोक्त पांच अणुक्त तथा मद्य मांस मधु का त्याग ये पाठ मूलगुण हैं । दूसरे प्राचार्य के मत में १“मद्यपान त्याग (शराब पीना,)२-पञ्चउदम्बर फलका त्याग, ३-मांस त्यान, ४-मधु त्याग, ५-जीवों की दया, ६-रात्रि में भोजन न करना, ७-वीतराग भगवान का दर्शन पूजन और ८-स्त्र से छाना हुआ जल पीना, यह आठ मूलमुण गगधर देव ने गृहस्थों के बतलाये हैं । इनमें से यदि एक भी मूल गुण कम हो तो गृहस्थ जैन नहीं हो सकता। अब श्रावकों के अणुव्रत बसलाते हैं:पञ्चावतामि ||१५|| -पांच अणुनत होते हैं । १-अहिंसा, २-सत्य, ३-प्रचौर्य, ४-ब्रह्मपतिमा परिग्रह परिमाण । -- -
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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