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________________ (१८८ ) २-राग भाव से स्त्रियों के देखने का त्याग । ३-स्त्रियों के साथ ग्रावार्षक मोठी बात चीत करने का त्याग । ४..पहले भोगे हुए विषय भोगों के स्मरण करने का त्याग । ५...-काम-उद्दीपक गरिष्ठ भोजन न करना । ६ ---अपने शरीर का शृंगार करके आकर्षक बनाने का त्याग । ७-स्त्रियों के विस्तर, चारपाई, आसन पर बैठने सोने का त्याग । ८-काम कथा करने का त्याग। E-भोजन थोड़ा सादा करना जिससे काम जाग्रत न हो। इस प्रतिमा के धागे को सादा वस्त्र पहनने चाहिए। वह घर में रहता हुना व्यापार आदि कर सकता है। प्रारम त्याग सब प्रकार के प्रारम्भ का त्याग करदेना प्रारम्भ त्याग नामक पाठवीं प्रतिमा है। ___ श्रारम्भ के दो भेद हैं--- १- घर सम्बन्धी, ५ सूना का [चक्की, तुम्हा अोखली, बुहारी और परीड़ा यानी पानी का कार्य] २-व्यापार-सम्बन्धी । जैसे दुकान, कारखाना वेती, अादिक कार्य । आरम्भ करने में जीव हिसा होती है तथा चित्त व्याकुल रहता है, कपाय भाव जागृत रहते हैं, अतः आत्म-शुद्धि और अधिक दया भाव का पाचरण करने की दृष्टि से यह प्रतिमा धारा की जाती है। इस प्रतिमा का धारी अपने हाथ से रसोई बनाना बन्द कर देता है। दूसरों के द्वारा बनाये हए भोजन को ग्रहण करता है। परिग्रह त्याग रुपये पसे, सोना चांदी, मकान रेत, अादि परिग्रह को लोभ तथा प्राकुलता का कारण समझकर सपने शरीर के सादे वस्त्रों के सिवाय समस्त परिग्रह के पदार्थों का त्याग कर देना परिग्रह त्याग प्रतिमा है। इस प्रतिमा को धारण करने से पहले वह अपने परिग्रह का धर्मार्थ तथा पुत्र आदि त्तराधिकारियों में वितरण करके निश्चिन्त हो जाता है। विरक्त होकर धर्मशाला, मठ आदि में रहता है। शुद्ध प्रानुक भोजन करने के लिये जो भी कहे उसके घर भोजन कर आता है, किन्तु स्वयं किसी प्रकार के भोजन बनाने के लिये नहीं कहता । पुत्र प्रादि यदि किसी कार्य के विषय में पूछते हैं । तो उनको अनुमति सलाह ] दे देता है।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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