________________
( १८७ )
छने हुए जल में वारीक राख या पिसी हुई लौंग, इलायची, मित्र आदि चीजें मिलाकर जल का रस रूप गन्ध बदल देने पर दो पहर | छह घंटे ] तक जल ग्रचित्त [जल कायिक जीव रहित ] रहता है तदनन्तर सत्रित हो जाता है ।
शाक फल आदि सचित [हरित ] वनस्पति सुख जाने पर या अग्नि से पक जाने आदि के बाद प्रचित्त [ प्रासु वनस्पति काय रहित] हो जाती है । इस प्रकार पांचवी प्रतिमाधारी को चित्त जल पीना चाहिए तथा प्रचित्त वनस्पति खानी चाहिए। जीभ को लोलुपता हटाने तथा जीव रक्षा की दृष्टि से पांचवी प्रतिमा का श्राचरण है ।
रात्रि भोजन त्याग
खाद्य 1 रोटी, दाल आदि भोजन | स्वाद्य | मिठाई आदि स्वादिष्ट वस्तु ] लेह ( बड़ो, चटनी आदि चाटने योग्य चीजें ), पेय ( दुध पानी शर्बत शादि पीने की चीजें, इन चारों प्रकार के पदार्थों का रात्रि के समय कृत कारित, अनुमोदना से त्याग करना रात्रि भोजन त्याग प्रतिमा है ।
सूर्यास्त से सूर्योदय तक रात में भोजन पान न स्वयं करना, न किसी दूसरे को भोजन कराना और न रात में भोजन करने वाले को उत्साहित करना, सराहना करना, अच्छा समझता इस प्रतिमाधारी का आचरण है । यदि अपना छोटा पुत्र भूख से रोता रहे तो भी इस प्रतिमाकधारी व्यक्ति न उसको स्वयं भोजन करावेगा, न किसी को उसे खिलाने की प्रेरणा करेगा। या न कहेगा । ब्रह्मचयं प्रतिमा
काम सेवन को तीव्र राग का, मनकी अशुद्धता का तथा महान हिंसा का कारण समझकर अपनी पत्नी से भी मैथुन सेवन का त्याग कर देना ब्रह्मचर्य नामक सतवीं प्रतिमा है ।
इस प्रतिमा का धारक नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहलाता है । नौ बाड़
जैसे खेत में उगे हुए धान्य को गाय आदि पशुओं से खाने बिगाड़ने से बचाने के लिए खेत के चारों ओर कांटों की बाड़ लगा दी जाती है उसी प्रकार ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्यं सुरक्षित रखने के लिये निम्नलिखित नियमों का प्राच रण करना आवश्यक है, इनको बाचर्य की सुरक्षा करने के कारण 'बाई' कहते हैं ।
६
१ – स्त्रियों के स्थान में रहने का त्याग ।
का पुतर.