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जलस्नानत्यागी महाव्रती साधुओं का शरीर मैला देखकर उससे घृणा कारना विचिकित्सा अतिचार है ।
मिथ्याश्रद्धालु व्यक्ति की प्रशंसा ( उसके पीछे तारीफ ) करना अन्य दृष्टिप्रशंसा नामक अतिचार है।
__ मिथ्या श्रद्धानी व्यक्ति के सन्मुख उसके गुणों का वर्णन करना अन्यदृष्टि संस्त्व नामक अतिचार है ।
सम्यग्दर्शन का आवश्यका वर्णन करके अब चारित्र का वर्णन प्रारंभ करते हैं, उससे सबसे पहले गृहस्थ चारित्र को लिखते हुए गृहस्थ की ११ श्रेणियों (प्रतिमानों) को कह्ते हैं।
एकादश निलयाः॥१०॥ चारित्रधारक गृहस्थ के ११ निलय यानी श्रेणी (प्रतिमाएं) हैं।
दंसरग वयसामाइय पोसहसचित्तरायभत्ते य ।
बम्हारंभपरिग्राह अणुमणमुद्दिट्ट देसविरदीए ॥
अर्थ–१ दर्शन, २ बत, ३ सामायिक, ४ प्रोपध, ५ सचित्तविरत, ६ रात्रि भुक्ति त्याग, ७ ब्रह्मचर्य, ८ प्रारम्भ त्याग, ६ परिग्रह त्याग, १० अनुमति त्याग, ११ उद्दिष्ट त्याग, ये गृहस्थ श्रावक के ११ निलय या प्रतिमाएं हैं।
दर्शन प्रतिमा संसार तथा शरीर, विषय भोगों से विरक्त गृहस्थ जब पांच उदुम्बर फल (बिनाफल के ही जो फल होते हैं १ बड़, २ पीपल, ३ पाकर, ४ ऊमर, ५ कठूमर) भक्षण के त्याग तथा ३ मकार (मद्यपान, मांस भक्षण मधुभक्षण) के स्यागके साथ सम्गदर्शन (वीतराग देव, जिन वाणो, निर्गन्थ साधु की श्रद्धा) का धारण करना दर्शन प्रतिमा है 1
व्रतप्रतिमा हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रह, इन पांच पापों के स्थूल त्याग रूप अहिंसा, सत्य, अनौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रह परिमाण, ये पांच अणुञ्जत, दिव्रत, देश बत, अनर्थ दण्ड व्रत, ये तीन गुगण व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास भोगोपभोग परिमाण. अतिथि संविभाग, ये ४ शिबित (५+३+४ = १२) हैं, इन समस्त १२ प्रतों का याचरण करना बत प्रतिमा है।
___ संकल्प से (जान बूझकर) दो इन्द्रिय आदि यस जीवों को न मारना