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________________ {१८१ ) प्रष्ट गुरगाः ।। अर्थ-सम्यग्दर्शन के पाठ गुण हैं। १ धर्मानुराग, २ निर्वेग, ३ अात्म निन्दा, ४ गट, ५ उपशम, ६ भक्ति, ७ अनुकम्पा और ५ प्रास्तिक्य ये उन ८ गुणों के नाम हैं । धर्म से, धर्म के फल से तथा धर्मात्मा के साथ अनुराग रखना सम्यग्दर्शन का पहला 'धर्मानुराग' गुण है । संसार, तथा शरीर विषय भोगों से विरक्त रहना 'निर्वेग' गुण है। अपने दोषों की निन्दा करना 'पात्मनिदा' नामक गुरण है । प्रायश्चित्त लेने के लिये अपने दोषों को गुरु के सामने आलोचना करना 'गहाँ' नामक गुण है। क्रोध आदि उग्र कषायों का मन्द होना शान्त भाव आना 'उपशम' नामक गुरण है। ___अर्हन्त भगवान, प्राचार्य तथा उपाध्याय आदि पूज्यों की पूजा, विनय, स्तुति आदि करना भक्ति' गुग है । समस्त पर, अचर, छोटे बड़े जीवों पर दया भाव रखना, उनको कष्ट न होने देना अनुकम्पा गुण है। प्रात्मा, परमात्मा, इहलोक परलोक, पुण्य पाप, स्वर्ग, नरक, मोक्ष प्रादि को मानना, कर्म, कर्म के फल के अस्तित्व की श्रद्धा रखना 'पास्तिक्य' गुण है। सम्यग्दृष्टि में ये ८ गुण होते हैं। इससे सम्यग्दर्शन को अच्छी शोभा होती है। _ अब सम्यग्दर्शन के अतिचार बतलाते हैं पंचातिचाराः ॥६॥ अर्थ-सम्यग्दर्शन के ५ अतिचार हैं। १ शंका, २ कांक्षा, ३ विचिकित्सा, ४ अन्यदृष्टि प्रशंसा, ५ अन्य-दृष्टिसंस्तव, ये ५ अतिचार गम्यग्दर्शन के हैं। वीतराग सर्वज्ञ देव के प्रतिपादित सिद्धान्त 'में पता नहीं यह बात ठीक है या नहीं है' ऐसा सन्देह करना 'शंका है। धर्म-साधन का फल सांसारिक विषय भागों की प्राप्ति चाहनाकांक्षा' नामक अतिचार है।
SR No.090416
Book TitleShastrasara Samucchay
Original Sutra AuthorMaghnandyacharya
AuthorVeshbhushan Maharaj
PublisherJain Delhi
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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