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अधिकार का अभिमान करना 'अधिकारमद' है । अधिकारमद में चूर होकर मनुष्य दूसरों का अपमान करता है, उनको आर्थिक, शारीरिक दण्ड देता है। इस तरह अपने पद का दुरुपयोग करता है। ___ इस तरह ८ मद सम्यग्दर्शन को मलिन करने वाले दोष हैं ।
छह अनायतन 'प्रायतन' शध्द का अर्थ 'घर' है। यहाँ सम्यक्त्व के प्रकरण में 'पायतन' का अर्थ 'धर्म का धर' या 'धर्म का स्थान है। जो 'धर्म का स्थान' न हो, अधर्म या मिथ्याल्ब का स्थान हो उस को 'अनायतन' कहते हैं ।
अनायतन ६ हैं-१ कुदेव, २ कुदेवालय, ३ मिध्या ज्ञाना, ४ मिथ्याज्ञानी, ५ मिथ्या तप, ६ मिथ्या तपस्वी ।
आत्मा, राग द्वेष, क्रोध, काम आदि दुर्भाबों के वाम होने या दूर होने से शुद्ध होता है। अतः वीतराग देव की भक्ति से वह प्रात्म-द्धि मिलती है। जो देव राग, द्वेष आदि दुर्भाव धारी हैं, कुदेव है, उनकी भक्ति से प्रात्मशुद्धि नहीं हो सकती, अत: कुदेव धर्मायतन नहीं, अनायसन हैं, इसी कारण सम्यग्दृष्टि उनकी भक्ति नहीं करता । जो व्यक्ति किसी स्वार्थ या प्रलोभनवश उनकी भक्ति करता है वह अपने सम्यक्त्व में दोष लगाता है।
__कुदेवों के स्थान भी इसी कारण त्याज्य हैं कि वहां आने जाने से आत्मशुद्धि की प्रेरणा नहीं मिलती । अतः कुदेवालय भी अनायतनं हैं।।
जिन शास्त्रों के पठन-पाठन से आत्मा में काम क्रोध आदि दुर्भाव उत्पन्न हों, आत्मज्ञान वैराग्य की प्रेरणा न मिल वे ग्रन्थ मिथ्या ज्ञान के उत्पादक हैं, अतः वे भी अनायतन हैं।
आत्मा के अहितकारक ग्रन्थों को पढ़कर यदि कोई विद्वान हो तो उस की विनय सेवा सुश्रूषा से कुज्ञान ही प्राप्त होगा, अतः मिथ्याज्ञानी भी अनायतन रूप है।
कर्म निर्जरा करा कर आत्मा को शुद्धता की दिशा में ले जाने तप तो श्रेयस्कर है । किन्तु जिस तप से प्रात्मा की मलिमता कम न हो पावे, वह तप कुतप या मिथ्या तप है और इसी कारण अनायतन है ।
... मिथ्या तप करने वाले प्रात्मज्ञान-शून्य तपस्वी अपने अनुयायियों को संसार से पार नहीं कर सकते, वे तो पत्थर की नाव की तरह संसार-सागर में स्वयं डूबते हैं और अपने भक्तों को डुबाते हैं, अतः वे भी अनायतन रूप हैं।
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