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यह भी समझ लो कि विविध योनियों के दुम्स संताप को दूर करना ही, ज्ञानमय स्वाधीन सुवामृत मागर में डुबकी लगाकर अानन्द में रहना हो तो सम्यक्त्व को प्राप्त करो ॥७१॥
अब वेदक सम्यक्त्व के दोष बतलाते हैं -
तत्र वेदकसम्यक्त्वस्य पंचविंशतिमलानि ॥६॥ अर्थ-वेदक सम्यक्त्व के २५ दोष होते हैं । उक्त च .मदत्रय पदाश्चाष्टौ, तयानायतनानि षट् ।
अष्टी शंकादयश्चेति, दग्दोषाः पञ्चविंशतिः॥ यानी-जीन मूढ़ता, पाठ मद, छह अनायतन, शंका आदि आठ दोष इस तरह सब मिल कर २५ दोप वेदक सम्यक्त्व हैं।
मूडता
दाम्भिक (अभिमानी), स्वार्थी, मायाचारी लोगों की बातों पर विश्वास रखकर, सत्य असत्य को परीक्षा न करके निराधार निष्फल बातों को धर्म समझ लेना मूढ़ता (मूर्खता) है । मूढ़ता के तोन भेद हैं-१ लोक मुड़ता, २ देव मूढ़ता और ३ पाखण्ड मूढ़ता।
लोक मूड़ता
सक्षास्त्रों का स्वाध्याय न किया हो, तत्व अतत्व का विचार न हो, सङ्गुरु का उपदेश न सुना हो, आचार विचार का ज्ञान न हो, ऐसे अनभिज्ञ मनुष्य दूसरे लोगों के देखा देखी चाहे जो कुछ क्रिया करके जो धर्म मानने लगते हैं । अथवा ठग मायाचारी साधुओं के द्वारा दिखाये गये किसी चमत्कार को देखकर उनके कहे हुए ऊटपटांग क्रिया कांडों में धर्म मानने लगते हैं, इष्ट अनिष्ट से अनभिज्ञ ( अनजान ) रहकर मेड़ों की चाल की तरह गतानुगतित्रा बन कर धर्म मान लेते हैं सो 'लोक मूढता' है।
प्रापगासागरस्नान मुच्चयः सिकतामनाम् । गिरिपातोऽग्निपातश्च लोकमुढं निगद्यते ॥
अर्थ-धर्म समझ कर नदी, सरोवर समुद्र में स्नान करने, पत्थरों तथा बालूका ढेर लगाने, अग्नि में जलने, पर्वत में गिरने को धर्म मानना' लोक मूत्ता' है। तथा घर की पूजा करना, नदी को पुजना. गाय, पीपल, मील के पत्थरों की पूजा करना, पीर पैगम्बर पूजना, ताजियों के नीचे बच्चों को लिटाना, मस्जिद में मुल्ला से मुख में थुकाना, ये लोक मूढ़ता के काम है । नदी आदि में स्नान करने से