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तथा ज्ञानावरण का पूर्ण क्षय हो जाने से वे समस्त लोक अलोक, भूत भविष्यत् वर्तमान काल के ज्ञाता हैं, ऐसी श्रद्धा करना सम्यक्त्व है ।।१७।।
समस्त संसार मोह-जाल में फंसा हुआ है उस मोह जाल को छिल. भिन्न करके मोक्ष की ओर आकर्षित करने वाला जिनमार्ग है, अन्य कोई मार्ग नहीं है, ऐसी निश्चल श्रद्धा ही सम्यग्दर्शन है ।।१८।।
पापास्रब के कारण, पुण्य कर्म मानव के कारण तथा मुक्त होने के कारण रूप जीव के परिणामों का ज्ञान होना, और उसका श्रद्धान करना, सम्यग्दर्शन है ।१६।
मन को व्याकुल करने वाले बाहरी विषय हैं, अतः वे त्याज्य हैं और चैतन्य-जनित स्वात्म-स्थिरता-रूप सुधारस अनुपम पेय है, ऐसा विश्वास करना सम्यक्त्व है ॥२०॥
सम्यग्दृष्टि जीव स्वाभिमानी होता है, अतः उसको उपशमनित अपना स्वाधीनसुख ही रुचिकर है, इन्द्रिय विषयादि-जन्य पराधीन सुख उसे इष्ट नहीं है । ऐसी धारणा ही सम्यक्त्व है ।।२१।।
__ "यही (जैनागम-प्रदर्शित) मोक्ष का लक्षण है, यही मोक्ष का फल है और यही मोक्ष को देने वाला है" इस प्रकार संशय-रहित श्रद्धान सम्यक्त्व है ।।२२।।
दुष्कर्मों के बन्धन नष्ट करने वाला तथा ज्ञान और चारित्र को सम्यक बनाने वाला, ऐसा अचिन्त्य प्रभावशाली गुग सम्यक्त्व है ।।२३३३
परमजिनेश्वर अर्हन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय सर्वसाधु को मनमें अच्छी तरह समझकर, बार बार उनके स्वरूप का अपने मन में रुचिपूर्वक भावना करना सम्यक्त्व है ॥२४॥
जिनेन्द्र देव की जैसी प्राकृति अांखों से देखी है, उसको मन में रखकर फिर सिद्ध परमेष्ठी को साक्षात् देख लेने की हृदय में भावना करता। सम्यक्त्व है ॥२५॥
देवों के सिंहासनों को कम्पायमान कर देने वाले तीर्थकर प्रकृति के उपार्जन की कारणभूत १६ भवनाएँ हैं; उनमें अग्रसर जो भावना है वह सम्यक्त्व है ।।२६॥ . तीन मूढ़ता, छः अनायनन, पाठ मद, शंका आदि पाठ दोष रहित जो नौ पदार्थ तथा सात तत्वों का श्रद्धान करना है सो सम्यक्त्व है ॥२७॥
लोक-निन्दित समस्त पापाचरण हेय (त्याज्य) है और स्मरण करने