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( १६० ) उपदेश सम्यक्त्व है ।।३॥ सिद्धान्त सूत्र सुनने के परवार को साला होता है वह मूभ सम्यक्त्व है ॥४॥ बीज पद सुनकर जो सम्यक्त्व होता है वह बीज सम्यमत्व है ।।।। संक्षेप से तात्विक विवेचन सुन कर जो सम्यग्दर्शन होता है वह संक्षेप सम्यक्त्व है ॥६॥ विस्तार के साथ तत्व विवेचन सुनने के बाद जो सम्यक्त्व होता है वह विस्तार सम्यक्त्व है ॥७॥ आगम का अर्थ सुन कर जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है वह अर्थ सम्यवत्व है ।।८॥ द्वादशांगवेत्ता श्र तकेवली के जो सम्यक्त्व होता है उसे अवगाड़ सम्यक्त्व कहते हैं ।।६।। केवल ज्ञानी का सम्यरत्व परमावगाट सम्यक्त्व है ।।१०।।
इस प्रकार जिन्होंने सम्यक्त्व प्राप्त किया उन्होंने जिनेन्द्र भगवान के मार्ग का अनुगमन किया और सावधर्म, विनय-सम्पन्नता को स्वीकार किया ।
मृदुशठ वचनद बकवे । षद मरेयोळु सवियमरेय विषदु प्रतेयं ददिनिष्पवंगागदु स । त्याधिष्टितं जिनेश्वर माग।७। इदु योग्यमयोग्य । मिदेलदोवियवलंघनिमिरेगतिहानिगम कदिनडेव कानरंगा । गदु सकलत्याग साधकं जैनमतं ।। इवु सप्तप्रकृतिळि । वियुगपशदि क्षयोपशादि क्षयदि । परिणल्लद दरिणविल्लद । भवसमितिगेपवरणं माइत्तमुदयिपुदुसम्यक्त्वं
इस प्रकार मोक्ष मार्ग के प्रतिकूल जैसे:--- वयसि निदानमं सुकृतमिल्लद वर्भरदितदप्रभू मियनेगळुत्तमिर्दु निधिगापबेडेयोळ मरळागि पोपमा
केयिन पवर्गमार्गदोवि फलर पिरिदोदितत्वनि । र्णय जनकोक्तियल्लि जडरप्परिदे नशक्ति चित्रभो ।। जिनदीक्षेगेनगुमह । भिरागिपुट्ट गुमनल भवदो जीव मनदोळु सम्यग्दर्शन । मनोमयु पोर्द दिनमरित मोळधे ।१०। ज्ञात्वातलामलक मद्भुवि सर्व विद्या । कृत्वा तपोसि बहुकोटि युगांतरारिण। दृर्शनामृतरसायन पान बाह्य नात्यंति किमनुभवंत हि मोक्ष लक्ष्मी ।११॥ अदु दूरभव्यनोळकू । डदबेन्तुमभव्य जीवनौळपुट्टिविसदं । .. तदु दुर्लभमद् भवभय । विदुर मदासन्न भव्यनोळ समनिसुगु।१२।